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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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आत्माको बनानेवाले कोई अवयव नहीं हैं। इस कारण तो आत्मा अवयवरहित है। किन्तु परमाणुके बराबर आकाशप्रदेशोंसे नाप लिये गये स्वकीय अंशोंपर शरीरव्यापी आस्मा तदात्मक होकर तिष्ठ रहा है । अतः आत्मा अवयवोंसे सहित होता हुआ सांश है । इस प्रकरणका भविष्य पांचवें अध्यायमें भले प्रकार युक्तिपूर्वक निरूपण कर दिया जावेगा । इस प्रकार समक्षमें वृत्तिपनारूप अन्वय भी हेतुका लक्षण नहीं हो सका।
अनेकांतात्मकं सर्व सत्त्वादित्यादि साधनं । सम्यगन्वयशून्यत्वेप्यविनाभावशक्तितः ॥ १७४ ॥
नित्यानित्यात्मकः शब्दः श्रावणत्वात्कथंचन । ...शद्वत्वाद्वान्यथाभावाभावादित्यादिहेतवः ॥ १७५॥
सम्पूर्ण पदार्थ ( पक्ष ) अनेक धर्मोसे तदात्मक हो रहे हैं ( साध्य ) । उत्पाद, व्यय, धौव्यरूप सत्तासे सहितपना होनेसे (हेतु ) तथा सभी पदार्थ ( पक्ष ) परिणामी हैं ( साध्य ) । अर्थक्रियाको करनेवाले होनेसे ( हेतु ) इत्यादिकहेतु सपक्षवृत्तिपनसे रहित हैं। फिर भी अविनाभाव नामके गुणकी सामर्थ्यसे समीचीन हेतु माने गये हैं। जब सभी पदार्थीको पक्षकोटिमें डाल दिया है, तो सपक्ष बनानेके लिये कोई पदार्थ शेष नहीं रह जाता है । अतः उक्त हेतु सपक्षमें वृत्ति नहीं हुये । और भी हेतु ऐसे हैं, जो कि सपक्षमें नहीं वर्तते हैं । शब्द ( पक्ष) द्रव्यार्थिक नयसे नित्य और पर्यायार्थिकनयसे अनित्यरूप है ( साध्य ) कान इन्द्रियसे उत्पन्न हुये प्रत्यक्षका विषय होनेसे (हेतु ) अथवा शब्द (पक्ष ) नित्य अनित्यरूप है (साध्य ) शंदपना.होनेसे (हेतु ) यद्यपि इन दो अनुमानोंमें घट, पट, आदिक सपक्ष तो हैं। किन्तु उनमें श्रावणत्व और शद्वत्व हेतु नहीं ठहरते हैं । हां, अन्यथामाव यानी साध्यके नहीं होनेपर हो जानेका अभाव होनेसे श्रावणत्व, शद्वत्व, इत्यादि हेतु भी व्यतिरेककी सामर्थ्यसे सद्धेतु हैं। ...
हेतोरन्वयवैधुर्ये व्यतिरेको न चेन वै।
तेन तस्य विनैवेष्टेः सर्वानित्यत्वसाधने ॥ १७६ ॥ ___ कोई यदि यों कहें कि सपक्षवृत्तिरूप अन्वयके वियोग हो जानेपर अन्यथानुपपत्तिरूप व्यतिरेक भी नहीं बनेगा, सो यह तो कहना। क्योंकि उस अन्वयके विना ही उस व्यतिरेकका बन जाना नियमसे अभीष्ट किया है। देखिये, बौद्धोंके यहां भी सर्वपदार्थीका अनित्यपना साधन करनेपर अन्वयके विना भी सत्त्व और अनित्यत्वका अविनामाव ( व्यतिरेक ) मान लिया गया है।
निश्चितो व्यतिरेक एव स्वविनाभावः साधनस्य नान्यः स चोपदर्शितस्य सर्वस्य हेतो. रन्वयासंभवेन सिद्धयत्येव । सत्येवाग्नौ धूम इत्यन्वयनिश्चयेग्न्यभावेन कचिदम इति व्यति
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