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वैशेषिकोंके माने गये संयोग आदिक छह संबंधोंके समान बौद्धोंके द्वारा माने मये विशेषरूपसे भी दो संबंधोकी ही व्यवस्था नहीं हो पाती है। इस कारण इन तादात्म्य और तदुत्पत्तिसे हेतुओंके इतने परिणामकी ठीक व्यवस्था नहीं हुई।
तद्विशेषविवक्षायामपि संख्यावतिष्ठते। न लिंगस्य परैरिष्टा विशेषाणां बहुत्वतः ॥ १४६॥
हेतुओंके विशेषमेदोंकी विवक्षा करनेपर भी दूसरोंके द्वारा मानी गयी हेतुकी दो या तीन संख्या तो नहीं निर्णीत होती हैं । क्योंकि हेतुओंके भेदप्रमेद बहुतसे हैं । वे दो आदि संख्याओंमें सभी गर्मित नहीं हो सकते हैं । भावार्थ-अन्यथानुपपत्तिलक्षणवाला हेतु एक ही है। विशेष: रूपसे यदि उसके भेद किये जायंगे तो उपलब्धि, अनुपलब्धि, या विधिसाधक, निषेधसाधक ये तो हो सकते हैं । क्योंकि इनमें जगत्के सभी ज्ञापकहेतुओंका अंतर्भाव हो जाता है। किन्तु तादाम्त्य तदुत्पत्ति या वीत, अवीत अथवा संयोग, समवाय, एवं पूर्वचर, उत्तरचर, तथा पूर्ववत् ; शेषवत् , सामान्यतोऽदृष्ट, इत्यादि विशेषमेद करना समुचित नहीं है।
___ संबंधत्वसामान्य सर्वसंबंधभेदानां व्यापकं न योग्यताख्यः संबंध इत्यचोधं, प्रत्यासत्तेरिह योग्यतायाः सामान्यरूपायाः स्वयमुपगमात् । सैवान्यथानुपपत्तिरित्यपि न मंतव्यं प्रत्यासत्तिमात्रे कचित्सत्यपि तदभावात् । न हि द्रव्यक्षेत्रकालभावप्रत्यासत्तयः सर्वत्र कार्यकारणभावसंयोगादिरूपाः सत्योप्यविनाभावरहिता न दृश्यते ततः संबंधवशादपि सामान्यतोन्यथानुपपत्तिरेकैवेति तल्लक्षणमेकं लिंगमनुमंतव्यं ।
____सामान्यरूपसे सम्बंधत्वधर्म ही संपूर्ण संबंधके भेदप्रभेदोंका व्यापक है । जैनोंका माना हुआ योग्यता नामक संबंध तो सर्वव्यापक नहीं है । इस प्रकारका कटाक्ष करना ठीक नहीं। क्योंकि इस प्रकरणमें सामान्यरूप हो रही योग्यताको ही संबंधपनेसे स्वयं प्रतिवादीने स्वीकार किया है। नियत, अनियत, सभी संबंधोंमें व्याप रही वह योग्यता ही अन्यथानुपपत्ति होय यह भी नहीं मानना चाहिये। क्योंकि सामान्यरूपसे अनेक प्रत्यासत्तियोंमेंसे कहीं कहीं योग्यताके रहनेपर भी उस अन्यथानुपपत्तिका अभाव है। देखिये, आकाश आत्मा, या जीव पुद्गल, तथा कुलाल घट, आदि पदार्थोकी द्रव्यरूपसे प्रत्यासत्ति है । और वायुघाम, सिद्ध भगवान् उपरिम तनुवातमें रहनेवाले सूक्ष्म निगोदिया, जीवकर्म, आदिकी क्षेत्रप्रत्यासत्ति है । तथा समानकालमें रहनेवाले घट, पट आदि पदार्थोकी या पूर्वापरपर्यायोंकी कालप्रसासत्ति है। एवं देवदत्त, जिनदत्त, आदिके कतिपय समानज्ञानोंकी भावप्रत्यासत्ति है । पितापुत्रको जन्यजनकभावरूप प्रत्यासत्ति है। ढाई द्वीप, सिद्ध लोक, सिद्धशिलाका समानपरिमाणरूप संबंध है । लोकाकाश, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायके समानसंख्याधाले प्रदेशोंका तुल्यसंख्यक संबंध है । जम्बूदीप, सर्वार्थसिद्धि विमान, नंदीश्वरकी