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तस्वार्थ लोकवार्तिके
- जाते हैं और जिस ही प्रकार व्यभिचार होनेसे व्याप्यव्यापकभाव संबंध भी नहीं देखा जाता है, तिस ही प्रकार तादात्म्य संबंध होनेसे भी व्यभिचार क्यों नहीं कहा जाता है । शीशोंकी वेलमें वृक्षपना नहीं है, चन्द्रकान्तमणिके निकट आजानेपर अग्नि शीतल हो जाती है।
देशकालाद्यपेक्षश्चेद्धस्मादेर्वह्निसाधनः। चूतत्वादिविशिष्टात्मा वृक्षत्वज्ञापको मतः ॥ १४२ ॥ संयोगादिविशिष्टस्तनिश्चितः साध्यसाधनः । विशिष्टता तु सर्वस्य सान्यथानुपपन्नता ॥ १४३ ॥
देश, काल, आकार, आदिकी अपेक्षा रखते हुए भस्म आदिक हेतु यदि अग्निको साधनेवाले माने जायेंगे और स्कन्ध, डाला, ऊपर जाकर फैलना, आदि स्वरूपोंसे विशिष्ट होता हुआ आम्रपना शीशोपना आदिक हेतु वृक्षपनके ज्ञापक माने जायंगे तब तो अविनाभावसे विशिष्ट होते हुये संयोग आदिक भी निश्चित होकर साध्यके साधनेवाले हो जायेंगे और वह सम्पूर्ण हेतुओंकी विशिष्टता तो अन्यथानुपपत्ति ही है । अर्थात् ज्ञापक हेतुका प्राण अविनाभाव ही है। उससे विशिष्ट होता हुआ चाहे कोई भी संयोगी, सहचर, आम्रत्व, आदिक हेतु होय निश्चितरूपसे साध्यको साध देवेगा।
सोयं कार्यादिलिंगस्याविशिष्टस्यागमकतामुपलक्ष्य कार्यस्वभावैर्यावद्भिरविनाभाविकारणे तेषां हेतुःस्वभावाभावेपि भावमात्रानुविरोधिनि " इष्टं विरुद्धकार्येपि देशकालाद्यपेक्षणं । अन्यथा व्यभिचारी स्याद्भस्मे वा शीतसाधन " इत्यादि वचनेन स्वयं विशिष्टतामुपयन्नेव यथा हेतोर्गमकत्वमविनाभावनियमेन व्याप्तमाचष्टेविनाभावनियमं तदभावेपि तत्संभवादन्यथा तस्य तेन विशेषणानर्थक्यात् । ततः संयोगादिरप्यविनाभावनियम विशिष्टो गमको हेतुरित्यभ्युपगंतुमर्हति विशिष्टतायाः सर्वत्रान्यथानुपपत्तिरूपत्वसिद्धेरिति न तदुत्पत्तितादात्म्याभ्यामन्यथानुपपन्नत्वं व्याप्तं ।
सो यह बौद्ध कार्यहेतु, स्वभावहेतु, और अनुपलब्धि हेतुको अन्यथानुपपत्ति नामके विशेषणसे सहित नहीं हुयेको साध्यका ज्ञापकपना नहीं है, इस बातका उपलक्षण कर यों कह रहा है कि जितने भर भी कार्य और स्वभावोंकरके अविनाभाव रखनेवाले कारण और भावोंके होनेपर उन कारण और भावरूप साध्योंके कार्य और स्वभाव ज्ञापकहेतु इष्ट हैं । स्वभाव न होनेपर भी कोई नारदपर्वतके समान भावोंका पीछे विरोध करनेवाले हेतुमें विज्ञापकपना नहीं है । बौद्ध ग्रन्थमें कहा है कि विरुद्धकार्य होनेपर भी देशकाल आदिकी अपेक्षा रखनेवाला हेतु ज्ञापक मान लिया जाता है। जैसे कि रसोई खानेमें गीले ईंधनकी अग्निरूप हेतुसे धुआंको साध लेते हैं । अथवा भरणीके उदयसे भविष्यके कृत्तिकोदयको साध लिया जाता है।