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- तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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शीतस्पर्श नहीं है, क्योंकि आग जल रही है, इस प्रकार विरोधी हेतुका भी तादात्म्य के बखसेभले ही अविनाभाव मान लो, क्योंकि अनुपलब्धि हेतुमें तो भावरूप अग्नि हेतु गर्मित नहीं हो सकता है । इस प्रकार सहचर, एकार्थसमवायी, आदि हेतुओंको तादात्म्य तदुत्पत्ति में गर्भित कर अपने मनोरथको चारों ओर गाकर प्रसिद्ध कर रहे भी बौद्धों के यहां यथायोग्य अभी कहे गये परभाग, साना, आदिक संयोगी और समवायी हेतुओंको तथा उनसे अन्य प्रसिद्ध होरहे चन्द्रोदय, छत्र, भरण्युदय, आदि हेतुओं को भी उन तादात्म्य, तदुत्पत्तिके बिना ही अविनाभावीपना प्राप्त हो गया, सो समझे रहना । यदि बौद्ध यों कहें कि यहां परभाग, साना, आदिमें अविनाभावीपना विशेषरूपसे नियत नहीं है । इस प्रकार बौद्धकी आशंकाका परिहार करते हुये आचार्य महाराज स्पष्ट कहते हैं ।
संयोगिना विना वह्निः खेन धूमेन दृश्यते ।
गवा विना विषाणादिः समवायीति चेन्मतिः ॥ १३९ ॥ कारणेन विना स्वेन तस्मादव्यापकेन च । वृक्षत्वेन क्षते किं न चूतत्वादिरनेकशः ॥ १४० ॥ ततो यथाविनाभूते संयोगादिर्न लक्ष्यते । व्यापको व्यभिचारत्वाचादात्म्यात्तत्तथा न किम् ॥ १४१ ॥
अपने साथ संयोग संबंध रखनेवाले धूमके बिना भी उष्ण लोहपिंडमें अग्नि दीख रही है, यह संयोगी हेतुका व्यभिचार हुआ। तथा समवाय संबंधवाले सींग, सास्ना, आदिक भी गौके विना न्यारे न्यारे भैंस करकेंटा ( गिरगिट ) में दीख रहे हैं, अतः समवायी हेतु दूषित है। बौद्धोंका इस प्रकार मन्तव्य होनेपर तो हम कहते हैं कि अपने कारणके विना कार्य नहीं होता है । और व्यापकके विना व्याप्य नहीं होता है। किंतु अनेकवार स्थूल देखनेवाले जीवोंने आम्रपन, शीशोपन, आदिककी वृक्षपने करके क्षति जो देखी गयी है। वह क्यों न होजाय । भावार्थ – चार्वाकोंके दिये नये दोषोंके अनुसार बौद्ध भी यदि दोष लगावेंगे कि वामीमेंसे मेह वरसने पर विना आगके धुआं उठता है, इन्द्रजालिया घडेमें धुआं है, आग नहीं है, गर्म लोहेका गोला अंगार या जले हुये कोयलों आदि अवस्था में धुआंके विना अग्नि तो रहती हुयी प्रसिद्ध होय ही रही है, शीशों और आमके पेडोंके समान शीशों, आम, पीपलकी वेलें भी हैं, ये सब दोष तो अच्छे नहीं है । क्योंकि कारण विना कार्य नहीं होता है और व्यापकके विना व्याप्य नहीं ठहरता है । वृक्षपनेसे व्याप्य होरहा शीशोपना, आम्रपना, न्यारा है। शीशोंकी वेल तो मिन्न प्रकारकी होगी । तिस कारण आप बौद्धों यहां अविनाभाववाले हेतुओंमें जिस प्रकार संयोग, समवाय, आदिक संबंध नहीं देखे
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