________________
तलार्य लोकवार्तिक
सास्त्रादिमानयं गोत्वाद्दौर्वा सानादिमत्त्वतः । इत्यन्योन्याश्रयीभावः समवायिषु दृश्यते ॥ १३७ ॥ चंद्रोदयोऽविनाभावी पयोनिधिविवर्धनः। .
तानि तेन विनाप्येतत्संबंधद्वितयादिह ॥ १३८॥
किसी भी भीत, कपाट, आदिका उरली ओरका भाग तो परली ओरके भागके साथ अविनाभाव संबंध रखनेवाला है। और वह परला भाग भी तिस प्रकार उरली ओस्के भागके साथ अविनाभाव रखता है । चौडे फाटवाली नदीका एक तीर दूसरे तीरके विना नहीं हो सकता है। इस प्रकारके समव्याप्तिवाले संयोगी हेतु सिद्ध हो रहे हैं । तथा यह पशु ( पक्ष ) लटकता हुआ गलेका चर्मरूप सास्ना, सींग, ककुद् ( टाठ ) पूंछके प्रान्त भागमें बालोंका गुच्छा हो जाना आदि धर्मोसे युक्त है ( साध्य ) । क्योंकि इसमें बैलपना है ( हेतु ) । अथवा यह पशु ( पक्ष ) गौ है ( साध्य ) । क्योंकि सास्ना, सींग, आदिसे सहित है ( हेतु ), इस प्रकार परस्परमे एक दूसरेके आश्रय होता हुआ समवायी हेतुओंमें अविनाभाव संबंध देखा जा रहा है । अर्थात् ज्ञात हो रहा है एक धर्मसे दूसरे अज्ञात धर्मका ज्ञान करा दिया जाता है। जहां सभी धर्म ज्ञात नहीं हैं, वहां उपाय न्यारा है तथा चंद्रमाका उदय होना भी समुद्रका जलवृद्धिके साथ संबंध अविनाभाव रखता है, और समुद्रकी वृद्धियां होना उस चन्द्रोदयके साथ अविनाभावको धारण करता है । इस कारण उक्त तादात्म्य और तदुत्पत्ति नामके दो संबंधोंके विना भी यहां संयोगी, समवायी, सहचर, ये हेतु भी अविनाभावी होकर अपने साध्यके.ज्ञापक देखे जा रहे हैं।
एवंविधं रूपमिदमामत्वमेवं रसत्वादित्येकार्थसमवायिनो वृक्षोयं शिशपात्वादित्येतस्य वा तदुत्पत्तितादात्म्यबलादविनाभावित्वं । नास्त्यत्र शीतस्पर्शोग्नेरिति विरोधिनस्तादात्म्यबलात्तदिति खमनोरथं प्रययतोपि संयोगिसमवायिनोर्ययोक्तयोस्ततोन्यस्य च प्रसिद्धस्य हेतोविनैव ताभ्यामविनाभावित्वमायातं। नास्त्येवात्राविनामावित्वं विनियतमित्येतदाशंक्य परिहरनाहा___कोई कुछ दिनोंसे अंधा हो गया पुरुष अनुमान करता है कि यह आम्रफल (पक्ष ) इस प्रकारके रूपवाला है ( साध्य ), क्योंकि इस प्रकार रस है (हेतु), प्रायः करके खट्टे और कच्चे आमका हरा रंग होता है । और मीठे और पके आमका पीला रूप होता है । ऐसे रस और रूपका एक ही अर्यमें समवाय संबंध हो जानेसे उन दोनोंका परस्परमें एकार्थसमवाय संबंध माना गया है। इनका तदुत्पत्ति नामक संबंधसे अविनाभाव बन जाओ । अथवा यह वृक्ष है, शिंशपा होनेसे, ऐसे इस अनुमानको तादात्म्यके बलसे अविनामावीपना बौद्धोंके विचार अनुसार रहो, तथा यहां