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तत्वार्यश्लोकवार्तिक
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लिये पर्याप्त कहा जासकता है । ऐसी दशामें उस तीन अवयववाले समुदित हो रहे त्रैरूप्यसे क्या करने योग्य शेष रहगया ! जिससे कि उस त्रैरूष्यको हेतुका लक्षण आटोपसहित बखान सकोगे अर्थात हेतुका लक्षण त्रैरूप्य नहीं है ।
न हि पक्षधर्मत्वशून्यो हेतुर्न संभवति तथाहि ।
प्रन्थकार स्वयं हेतुके त्रैरूप्यलक्षणकी अव्याप्ति दिखलाते हैं। पक्षमें वृत्तिपमरूपसे रहित होता हुआ हेतु नहीं संभवता है, यह नहीं समझना । अर्थात् पक्षमें नहीं वर्तते हुये भी हेतु समीचीन हेतु माने गये हैं । इसी बातको दृष्टान्त देकर स्पष्ट कहते हैं।
उदेष्यति मुहूचाते शकटं कृत्तिकोदयात् ।
पक्षधर्मत्वशून्योयं हेतुः स्यादेकलक्षणः ॥ १३०॥
मुहूर्त्तभर कालके अन्तमें (पक्ष ) रोहिणीका उदय होवेगा ( साध्य ) इस समय कृत्तिकाका उदय होनेसे ( हेतु )। यह हेतु पक्षवृत्तिपनरूपसे शून्य होता हुआ भी एक अन्यथानुपपत्ति नामका लक्षण घटजानेसे सद्धेतु माना गया है। भावार्य-कृत्तिकाका उदय हेतु तो कृत्तिका नक्षत्रमें रहता है और अनेक ताराओंके गाडी समान आकारवाले रोहिणीनक्षत्रका उदयरूप साध्य तो रोहिणीमें रहेगा । किन्तु पक्षमें वृत्ति न होनेपर भी अविनाभावकी सामर्थ्यसे कृत्तिकोदय सद्धेतु है।
उदेष्यच्छकटं व्योम कृत्तिकोदयवत्त्वतः । इति प्रयोगतः पक्षधर्मतामेष्यते यदि ॥ १३१ ॥ तदा धूमोग्निमानेष धूमत्वादिति गद्यताम् ।
ततः स्वभावहेतुः स्यात्सवों लिंगस्त्रिवान्न ते ॥ १३२ ॥
पक्षवृत्तित्वकी रक्षा करनेके लिए बौद्ध उक्त अनुमानका रूपक यों बनाते हैं कि आकाश (पक्ष) भविष्यमें उदय होनेवाले रोहिणीके उदयसे सहित होनेवाला है [ साध्य ], वर्तमान कालमें कृत्तिकाके उदयसे सहितपना होनेसे [ हेतु] । ऐसा अनुमानका प्रयोग करनेसे आकाशरूप पक्षमें कृत्तिकोदयसहितपना हेतुका ठहरना यदि बौद्ध समन्तात् इष्ट करेंगे, तब तो यह धूम [ पक्ष ] अग्निवाला है [ साध्य ], धूमपना होनेसे [ हेतु ] । इस प्रकार अनुमान बनाकर कह देना चाहिये । क्योंकि धूमत्व हेतु धूमपक्षमें वर्त रहा है। किंतु व्यभिचारी होनेके कारण धूमहेतु अग्निको साधनेमें सद्धेतु नहीं है । धूमत्व तो धूममें रहता है । उस धूममें संयोग संबंधकरके अग्नि नहीं है । धूमकी लंबी पंक्तिके नीचे, रसोईखाना, बैलखाना, पर्वत, अघिहाना, आदिमें अग्नि भले ही होय । दूसरी बात यह है कि यों तो तुम बौद्धोंके यहां सभी हेतु स्वभावहेतु ही बन जावेंगे, कार्यहेतु