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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
बौद्ध तो स्वयं ही उस एक ही विपक्ष विरुद्धपनेको हेतुका परमार्थरूपसे लक्षण करा रहा है। कारण कि हेतुका साध्याभावके साथ विरोध होना उस अन्यथानुपपत्तिसे कोई न्यारा स्वरूप नहीं माना गया है । और उस साध्याभाव विरोध यानी अन्यथानुपपत्तिको ही हेतुका लक्षण इष्ट करनेपर तो इस हेतुमें पक्षवृत्तिपन आदि तीन धर्मोसे क्या लाभ हुआ ? अर्थात् हेतुमें तीन धर्मोका बोझ बढाना व्यर्थ है। क्योंकि कहीं उन तीन धर्मोके अभाव होनेपर भी संशयरहित होकर दृढता पूर्वक सद्धेतुपना सिद्ध हो रहा है। माता पिताके ब्राह्मण होनेसे पुत्रका ब्राह्मणपना साधा जाता है । यह हेतु तो पक्षमें नहीं वर्तता है। यहां पुत्र पक्ष माना गया है । और हेतु मातापिताका ब्राह्मणपना है । माता पिताका ब्राह्मणपना माता पिताओंमें रहता है । तथा दूसरा अनुमान सुनिये । जीवितशरीर ( पक्ष ) सात्मक है ( साध्य ) श्वासोच्छास, उष्णस्पर्श, आदि होनेसे ( हेतु ) । यहां सभी जीवितशरीरोंको पक्षमें प्रविष्ट कर देनेसे सपक्ष नहीं मिलनेके कारण हेतुका सपक्षमें वर्त्तना नहीं घटता है। इसी प्रकार सभी पदार्थ क्षणिक हैं, क्योंकि वे सत् हैं, या अर्थक्रियाकारी हैं, तथा सम्पूर्ण पदार्थ ( पक्ष ) अनेक धर्मस्वरूप हैं ( साध्य )। उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यरूप सत् होनेसे ( हेतु ), जैसे कि आग्नि, चित्रज्ञान, आदिकभाव अनेकांतस्वरूप हैं ( दृष्टान्त )। यहां सबका पक्षमें अन्तर्भाव हो जानेसे विपक्षव्यावृत्ति नहीं बनती है । अतः त्रैरूप्यके न होनेपर भी हेतुपना निस्सन्देह सिद्ध हो जाता है।
और गर्भस्थ पुत्र श्याम है, काली मित्राका लडका होनेसे, अन्य खेलते हुये उसके पुत्रोंके समान, यहां त्रैरूप्य होते हुये भी मित्रातनयपना सद्धेतु नहीं है। क्योंकि उदरका लडका वस्तुतः गोरा है । अतः अव्याप्ति, अतिव्याप्ति, दोष आते हैं ।
साध्याभावविरोधित्वाभावाद्धेतुस्त्रैरूप्यमविशिष्ट वक्तृत्वादिरिति वदन्नन्यथानुपपबत्वमेव विशिष्टत्वमभ्युपगच्छति साध्याभावविरोधित्वस्यैवान्यथानुपपन्नत्वनियमव्यपदेशात् । तथा पक्षधर्मत्वमेकमन्यथानुपपन्नत्वेन विशिष्टं सपक्षे सत्त्वं वा विपक्षासत्त्वमेव वा निश्चितं साध्यसाधनायालमिति किं तत्त्रयेण समुदितेन कर्तव्यं यतस्तद्धतुलक्षणमाचक्षीत ।
___बौद्ध कहते हैं कि त्रैरूप्यका विशेषण साध्यामावविरोधित्व लगाना चाहिये, वक्तापन हेतुमें विशेषणसे रहित केवल त्रैरूप्य है। साध्याभावके साथ विरोधीपनरूप विशेषण न रहनेसे वक्तापन, पुरुषपन, ये सत् हेतु नहीं हो सकते हैं । इस प्रकार कह रहा बौद्ध अन्यथानुपपत्ति नामक विशेषणसे ही सहित हेतुको स्वीकार कर रहा है। क्योंकि साध्याभावके साथ विरोध रखनेवालापनको ही साध्यके न रहनेपर हेतुका नियमसे नहीं ठहरनापनसे कथन करनेका व्यवहार कर दिया जाता है। तिस प्रकार होनेपर तो अकेले पक्षधर्मत्वरूपको ही अन्यथानुपपत्ति विशेषणसे विशिष्ट बनाकर हेतुको साध्य साधनेके लिये बोल सकते हो अथवा दूसरे सपक्षमें विद्यमानपना इस रूपको ही अन्यथानुपपत्तिसे सहितकर साध्यसिद्धि करासकते हो अथवा विपक्षमें नहीं रहनापन इस तीसरे रूपको ही अन्यथानुपपत्ति सहितपनेसे निश्चित कर उस रूपसे युक्त हुआ हेतु ही साध्यको साधने के