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तत्वार्थ लोकवार्तिके
समीचीन तर्कज्ञान ( पक्ष ) प्रमाण होना चाहिये ( साध्य ) । तिस प्रकार प्रमाणोंका अनुग्रह करनेवाला होनेसे ( हेतु ), जिस प्रकार प्रत्यक्ष और अनुमान आदिक प्रमाणपनको व्याप्त कर लेते हैं (दृष्टान्त ) । प्रमाणोंके ऊपर अनुग्रह करनेवालापन हेतु प्रमाणपनरूप साध्यसे व्याप्त हो रहा प्रत्यक्ष आदि दृष्टन्तोंमें देखा जाता है । तिस प्रकारका अनुग्रहपन प्रमाणाभासों में नहीं दीखता है । क्योंकि आगमके अनुग्रह करा देनेपनका प्रत्यक्ष आदिमें जो निर्णय हो रहा है, उसकी क्षति हो जावेगी । अर्थात् सत्यवक्ता के द्वारा जान की गई, अग्निके आगमज्ञानका धूमहेतुसे उत्पन्न हुये अनुमानद्वारा और अग्निके प्रत्यक्षद्वारा अनुग्रह कर दिया जाता है । ये कृपाकारक अनुमान और प्रत्यक्ष जैसे प्रमाण हैं, उसी प्रकार अनुमानके ऊपर कृपा करनेवाला तर्कज्ञान भी प्रमाण होना चाहिये ।
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यस्मिन्नर्थे प्रवृत्तं हि प्रमाणं किंचिदादितः ।
तत्र प्रवृत्तिरन्यस्य यानुग्राहकता सा ॥ ११८ ॥ पूर्वनिर्णीतदार्व्यस्य विधानादभिधीयते ।
उत्तरेण तु तद्युक्तमप्रमाणेन जातुचित् ॥ ११९ ॥
जिस अर्थ में कोई भी प्रमाण प्रथमसे ही प्रवर्त्त रहा है, उसी विषय में अन्य प्रमाणोंकी प्रवृत्ति हो जाना जो यहां अनुग्राहकपना माना गया है, वह अनुग्राहकता भी पहलेसे निर्णीत किये गये अर्थकी अधिक दृढताका विधान करनेसे कही जाती है। उत्तरकालवर्ती प्रमाणरूप ज्ञानसे पूर्वनिर्णीत अर्थकी दृढ़ता की जा सकती है । अप्रमाणज्ञानमें या अप्रमाण ज्ञानकरके दृढता कभी नहीं हो सकती है। तभी तो दृढताका सम्पादक तर्कज्ञान प्रमाण है ।
स्वयं प्रमाणानामनुग्राहकं तर्कमिच्छन्नाप्रमाणं प्रतिपत्तुं समर्थो विरोधात् । प्रमाणसामन्तर्भूतः कश्चित्तर्कः प्रमाणमिष्ट एवेति चेन्न, तस्य स्वयं प्रमाणत्वोपपत्तेः । तथाहि-प्रमाणं तर्कः साक्षात्परंपरया च स्वार्थनिश्चयने फळे साधकतमत्वात् प्रत्यक्षवत् स्वविषयभूतस्य साध्यसाधनसंबंधाज्ञाननिवृत्तिरूपे साक्षात् स्वार्थनिश्चयने फळे साधकतमस्तर्कः परंपरयातु स्वार्थानुमाने हानोपादानोप्रेक्षाज्ञाने वा प्रसिद्ध एवेत्युपसंहियते ।
प्रमाणोंके ऊपर अनुग्रह करानेवाले तर्कको स्वयं चाहता हुआ विद्वान् इस तर्कको अप्रमाण समझने के लिये समर्थ नहीं है । अन्यथा स्ववचनसे ही विरोध हो । जावेगा यदि कोई वैशेषिक, बौद्ध, नैयायिक या मीमांसक, यों कहे कि प्रमाणकी सामग्रकेि भीतर प्रविष्ट हुआ कोई तर्कज्ञान हमको प्रमाण इष्ट ही है । अर्थात् वकीलके पिताको वकील कहनेके समान हम तर्कज्ञानको प्रमाणकी सामग्री के भीतर प्रविष्ट हुआ गिनते हैं। स्वतंत्र न्यारा प्रमाण नहीं मानते हैं । ग्रन्थकार कहते