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तत्वार्थकोकवार्तिके
___ अनुमानप्रमाणको उत्पत्तिमें कारण हो रहे तर्कके द्वारा जाने गये संबंधमें यदि सम्वादका अभाव होगा तो अनुमान ज्ञानके भी सम्वाद होनेका निश्चय नहीं सम्भवता है । विसम्वादी ज्ञानोंसे सम्वादी ज्ञान उत्पन्न नहीं होते हैं। चूहोंके जन्माये चूहे ही होंगे, सिंह नहीं ।
संवादस्तकस्य नास्ति विप्रकृष्टाविषयत्वादिति चेत् ।......
तर्कज्ञानके सम्वादका होना नहीं घटित होता है। क्योंकि तर्कज्ञान सूक्ष्म,व्यवहित, विप्रकृष्ट, पदार्थोको विषय करता है, जैसे लम्बी चौडी यहां वहाँकी गप्पाष्टक वकनेवाला पुरुष सभी बातोंको सत्यके घाटपर नहीं उतार सकता है । इस प्रकार बौद्धोंकी शंका करनेपर तो आचार्य उत्तर कहते हैं कि
तर्कसंवादसंदेहे निःशंकानुमितिः क ते । तदभावे न चाध्यक्षं ततो नेष्टव्यवस्थितिः ॥ ९१ ॥ तस्मात्प्रमाणमिच्छद्भिरनुमेयं स्वसंबलात् । चिंता चेति विवादेन पर्याप्तं बहुनात्र नः ॥ ९२ ॥
तर्कके सम्वादमें संदेह करनेपर तुम बौद्धोंके यहां शंकारहित होता हुआ अनुमान मला कहां होगा ? अर्थात् कहीं भी प्रमाणभूत अनुमान नहीं हो सकेगा और उस अनुमान प्रमाणका अभाव हो जानेपर प्रत्यक्ष प्रमाणकी भी सिद्धि नहीं होगी। प्रत्यक्ष ज्ञानोंमें भी प्रमाणपना तो अविसम्वाद, स्वष्टत्व, अगौणत्व आदि हेतुओंसे अनुमानद्वारा ही साधा जाता है। तब तो अनुमान और प्रत्यक्षके विना बौद्धोंके यहां किसी भी इष्टपदार्थकी व्यवस्था नहीं हो सकती है । तिस कारण अनुमानसे जानने योग्य सम्पूर्ण प्रत्यक्षोंका अपने अपने सम्वादके बलसे प्रमाणपन चाहनेवाले बौद्धोके द्वारा चिंतारूप तर्कज्ञान भी प्रमाण मानना चाहिये । अपने विषयको जाननेकी श्रेष्ठसामर्थ्यसे तर्क ज्ञान भी प्रमाण बन बैठता है। इस प्रकरणमें हमको बहुत विवाद करनेसे परिपूर्णता हो चुकी है। अर्थात् प्रदिवादियोंकी शंकाका हम परिपूर्ण समाधान कर चुके हैं । अब झगडा बढाना व्यर्थ है। ... सर्वेण वादिना ततः खेष्टसिद्धिः प्रकर्तव्या अन्यथा प्रलापमात्रप्रसंगात् । सा च प्रमा
णसिद्धिमन्वाकर्षति तदभावे तदनुपपत्तेः। तत्र प्रत्यक्ष प्रमाणमवश्यमभ्युपगच्छतानुमानमुररीकर्तव्यमन्यथा तस्य सामस्त्येनाप्रमाणव्यवच्छेदेन प्रमाणसिध्ययोगात् । निःसन्देहमनुमानमीप्सता साध्यसाधनसंबंधग्राहिममाणमसंदिग्धमेषितव्यमिति तदेव च तर्कः ततस्तस्य च संवादो निःसन्देह एव सिद्धोऽन्यथा प्रलापमात्रमहेयोपादेयमश्लीलविज़ुभिवमायातीति पर्याप्तमत्र बहुभिर्विवादैरूहसंवादसिद्धरुलंघनानहत्वात् । . .