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तत्वार्थचिन्तामणिः
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होता है, जिससे कि बाधकोंके नहीं सम्भवनेका अच्छा निश्चित होनापन न होता अर्थात् संबंध हीसे उत्पन्न हो रहीं, अर्थक्रियाओंका कोई बाधक प्रमाण नहीं है, ऐसा अच्छा निर्णय हो रहा है।
सर्वथा संबंधाभाववादिनस्तत्रास्ति बाधकमत्यय इति चेत्, सर्वथा शून्यवादिनस्तवोपप्लववादिनो ब्रह्मवादिनो वा जाग्रदुपलब्धार्थक्रियायां किं न बाधकमत्ययः। स तेषामविद्याबलादिति चेत् संबंधितायामपि तत एव परेषां बाधकमत्ययो न प्रमाणाबलादिति निर्विवादमेतत् यतः सैव तर्कात् संबंधं प्रतीत्य वर्तमानोर्थानां संबंधितामबाधमनुभवति ।
___ सभी प्रकारसे संबंधके अभावको कहनेवाले बौद्धके यहां उस संबंधकी अर्थक्रियामें बाधकज्ञान उत्पन्न हो रहा है । इस प्रकार बौद्धोंके कहनेपर तो हम भी कह देंगे कि सर्वथा शून्य ही जगत्को कहनेवाले या संपूर्णतत्त्वोंकी सिद्धिका च्युत होना कहनेवाले अश्वा अद्वैत ब्रह्मका प्रतिपादन करनेवाले वादियोंके यहां बौद्धोंकी मानी हुई और जगते हुये पुरुषकी जान ली गयी अर्थक्रियामें बाधकज्ञान क्यों नहीं माना जायगा ? । "जीवो जीवस्य घातकः" इस नीतिके अनुसार सुचैतन्य अवस्थाके भी बाधनेवाले उद्दण्डवादी विद्यमान हैं । इसपर बौद्ध यदि यों कहें कि उन शून्यवादी, तत्त्वोपप्लववादी,
और ब्रह्मवादियोंके मन्तव्य अनुसार हुआ वह बाधकज्ञान तो उनकी अविद्याकी सामर्थ्यसे हो गया है, वह प्रमाणरूप नहीं है । तब तो हम जैन कहते हैं कि पदार्थोके संबंधसहित या संबंध आत्मकपनेमें भी तिस ही अविद्याकी सामर्थ्यसे दूसरे बौद्ध विद्वानोंको भी बाधकज्ञान उत्पन्न हो गया है। प्रमाणकी सामर्थ्यसे संबंधीपनमें कोई बाधक प्रत्यय उत्थित नहीं होता है । इस प्रकार यह तर्क ज्ञानका विषय हो रहा संबंध विवादरहित सिद्ध हो गया। कारण कि वही वादी तर्क ज्ञानसे संबंधका निर्णय कर प्रवृत्ति कर रहा संता पदार्थोके संबंधीपनका बाधारहित अनुभव कर रहा है । युक्ति
और अनुभवसे जो बात सिद्ध हो जाती है, वह वज्रलेपके समान दृढ है । अब झगडा उठानेके लिये स्थान नहीं है।
तत्तर्कस्याविसंवादोनुमा संवादनादपि । - विसंवादे हि तर्कस्य जातु तन्नोपपद्यते ॥ ९० ॥
कारणभूतज्ञानके प्रमाण होनेपर ही कार्यभूतज्ञान प्रमाण उत्पन्न होता है । उत्तरवर्ती अनुमानका सम्वाद हो जानेसे भी उस तर्कज्ञानका अविसम्वादीपना सिद्ध हो जाता है । अन्यथा नहीं । कारण कि तर्कज्ञानका विसम्वाद होनेपर कभी भी अनुमानका वह सम्वादीपना नहीं बन पाता है। लोकमें भी यह परिभाषा प्रसिद्ध है कि " जैसे होवें नदी नाले तैसे उनके भरिका । जैसे जाके माई बापा तैसे ताके लरिका " " कारणानुरूपं कार्य भवति"।
न हि तर्कस्यानुमाननिबंधने संबंधे संवादाभावेनुमानस्य संवादः संभविनिश्चितः ।