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तत्वार्यचिन्तामणिः
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रहा है । हां, उस अभ्यासदशा के अतिरिक्त अनभ्यस्त स्थलपर अनुमानसे प्रत्यभिज्ञाको प्रमाणपना साध लिया जाता है । वह अनुमान या उसके भी प्रमाणपनके लिये उठाया गया अन्य अनुमान अभ्यासदशाका होनेसे स्वतः प्रमाणरूप है । यही उपाय बौद्धोंका शरण्य है ।
प्रत्यभिज्ञांतरादाद्यप्रत्यभिज्ञार्थसाधने । यावस्था समा सापि प्रत्यक्षार्थप्रसाधने ॥ ७८ ॥ प्रत्यक्षांतरतः सिद्धात्स्वतः सा चेन्निवर्तते । प्रत्यभिज्ञांतरादेतत्तथाभूतान्निवर्तताम् ॥ ७९ ॥
आप बौद्धोंने आदिमें हुयी प्रत्यभिज्ञाके विषयभूत अर्थको साधने में दूसरी, तीसरी, आदि प्रत्यभिज्ञाओंकी आकांक्षा बढती बढती जानेसे जो अनवस्था दोष दिया था, वह दोष आपके यहां प्रत्यक्ष द्वारा अर्थका समीचीन साधन करनेमें भी समान ढंगसे लागू होता है । अर्थात् पहिले प्रत्यक्ष के जाने हुये विषयकी वस्तुभूतपनेसे सिद्धि अन्य प्रत्यक्ष प्रमाणसे की जायगी और अन्य प्रत्यक्षके विषयका वास्तविकपना तीसरे, चौथे, आदि प्रत्यक्षोंसे साधा जायगा, यह अनवस्था आती है । यदि बौद्ध यों कहें कि अभ्यासदशाके स्वतः सिद्ध प्रामाण्यको रखनेवाले अन्य प्रत्यक्षसे आद्यप्रत्यक्षके विषयका यथार्थपना साध लिया जायगा, अतः वह अनवस्था दोष निवृत्त हो जाता है । इस प्रकार कहनेपर तो इम जैन भी यही समाधान कर देवेंगे कि तैसे ही हो रहे । स्वतः सिद्ध प्रमाणपनको धरनेवाले अभ्यास दशाके अन्य प्रत्यभिज्ञान से यह पहिले प्रत्यभिज्ञानका विषय भी वस्तुभूत साध लिया जाता है । अतः अनवस्था दोष निवृत्त हो जाओ ।
ततो नैकत्वप्रत्यभिज्ञानं सावद्यं सर्वदोषपरिहारात् ।
तिस कारण एकत्वको जाननेवाला प्रत्यभिज्ञान सदोष नहीं है । क्योंकि प्रतिवादियों द्वारा
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उठाये गये सम्पूर्ण दोषों का समीचीन युक्तियोंसे निवारण कर दिया गया है ।
सादृश्यप्रत्यभिज्ञानमेतेनैव विचारितम् ।
प्रमाणं स्वार्थसंवादादप्रमाणं ततोन्यथा ॥ ८० ॥
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इस उक्त कथन करके ही सादृश्यको विषय करनेवाले प्रत्यभिज्ञानका भी विचार कर दिया गया, समझलो । अपने और अर्थके जाननेमें बाधा नहीं पडनारूप सम्वादसे वह सादृश्य प्रत्यभिज्ञान प्रमाण है । और उससे अन्यथा होनेपर यानी सादृश्य प्रत्यभिज्ञानके स्व और सादृश्य विषयमें व्यामि - चार या बाधा उपस्थित होनेपर सादृश्यज्ञान अप्रमाण है, अर्थात् उसी एक में या विसदृशपदार्थ में हुआ सदृशपनेका प्रत्यभिज्ञान अप्रमाण है । सदृश अर्थ में हो रहा सादृश्य ज्ञान प्रमाण है । यह व्यवस्था सभी ज्ञानोंमें है ।