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________________ तत्वार्थ लोकवार्तिके प्रसंग होगा । किन्तु सभी देखी जानी हुई वस्तुओंका तो स्मरण नहीं होता है। लाखों करोडों, अनुभूत पदार्थोंमेंसे एकका किसीको स्मरण होता है । अन्यथा श्री अकलंकदेवके समान सभी शिष्योंको गुरुके एक वार कह देने पर सूक्ष्मसिद्धान्तोंका भी कालान्तरतक स्मरण बना रहना चाहिये । पेंठ, (बाजार ) मेला उपवन आदिमें देखी हुई सम्पूर्ण वस्तुओंका बहुत दिनोंतक स्मरण होता रहना चाहिये । किन्तु शतावधानी सहस्रावधानीको भी सबका स्मरण नहीं रहता है । तथा देखे हुये पदाके समानजातिवाले अन्य किसी पदार्थका दीखजाना भी स्मरणका कारण नहीं है । क्योंकि उस सजातीय पदार्थका दर्शन होनेपर भी किसी किसीके स्मरणज्ञान नहीं बनता है । यह अन्वय व्यभिचार है, जो कि उनके कार्यकारण भावको बिगाड देता है । यदि स्मरणका कारण पहिली art हुई वासनाओंका जागृत होना है, यह तुम कहोगे, तो हम पूछेंगे कि वह वासनाओंका प्रबोध भला किस निमित्तसे हुआ ! बताओ । देखे हुये पदार्थके सजातीय पदार्थके देखनेसे वासनाका उद्बोध होना मानो यह तो ठीक नहीं है । क्योंकि उस सजातीयके देखनेपर भी वे वासनायें प्रबुद्ध नहीं हो पाती हैं। प्रतिदिन रुपये, घोडे, गृह, मनुष्य, आदि हजारों उन उनके सदृश पदार्थोंको देखते हैं, किन्तु किस किसकी वासना उद्बुद्ध होती है ? किसीकी भी नहीं । इस कथनसे किसी देखी हुई वस्तुकी अभिलाषा रखना, प्रकरण प्राप्त होजाना, पटुता, शोक, वियोग, आदि बहिरंग उपाय भी उस स्मरणके अव्यभिचारी हेतु हैं, इसका भी खण्डन करदिया गया है। सभी देखे हुये हेतुओंका अन्ययव्यभिचार और व्यतिरेकिव्यभिचार हो रहा है । वस्तुभूत ठोस कार्योंके साधक कारणोंका विचार करनेवाले न्यायशास्त्र में काव्योंकी या ग्रामीणोंके उपाख्यानोंकीसी पोली कार्यकारता इष्ट नहीं की जाती है। हम क्या करें। उससे कार्य नहीं हो पाता है । 1 २२२ तदविद्यावासनाप्रहाणं तत्कारणमिति चेत्, सैंव योग्यता स्मरणावरणक्षयोपशम लक्षणा तस्यां च सत्यां सदुपयोगविशेषा वासना प्रबोध इति नाममात्रं भिद्यते । ततो यत्रार्थेनुभवः प्रवृत्तस्तत्र स्मरणावरणक्षयोपशमे सत्यंतरंगे हेतौ बहिरंगे च दृष्टसजातीयदर्शनादौ स्मरणस्योत्पत्तिर्न पुनस्तदभावेतिप्रसंगादिति नानादिद्रव्यपर्यायेषु स्वयमनुभूतेष्वपि कस्यचित्स्मरणं, नापि प्रत्यभिज्ञानं तन्निबंधनं तस्य यथास्मणं, यथाप्रत्यभिज्ञानावरणक्षयोपशमं च प्रादुर्भावादुपपन्नं तद्वैचित्र्यं योग्यतायास्तदावरणक्षयोपशमलक्षणाया वैचित्र्यात् । यदि उस स्मरणीय पदार्थकी लगी हुई अविद्यावासनाका प्रकृष्ट नाश हो जाना उस स्मरणका कारण माना जायगा ऐसा होनेपर तो वही योग्यता हमारे यहां स्मरणावरण कर्मका क्षयोपशम स्वरूप इष्ट की गई है। और उस योग्यताके होते संते श्रेष्ठ उपयोग विशेषरूप वासना ( लब्धि ) का प्रबोध हो जाता है। इस ढंगसे तो हमारे यहां और तुम्हारे यहां केवल नामका भेद है । अर्थसे कोई भेद नहीं है, अभिप्राय एक ही पड गया । तिस कारण यह सिद्ध
SR No.090497
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1953
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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