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तत्वार्थचिन्तामणिः
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जीवोंके भोजनार्थ व्यंजन तैयार हो जाता है। इसमें कौन बडे आश्चर्यकी बात है ! जब कि एक प्रदेशपर सम्पूर्ण लोकमें भरी हुई अनन्तानंत परमाणुऐं समा जासकती हैं और कई स्थूल पदार्थ भी एक स्थानपर धरे हुये हैं तो इधर, उधरके अनन्त स्कन्धोंका क्षीरान (खीर ) रूप परिणाम होता हुआ करोडों क्या असंख्यजीवोंको भी तृप्त कर सकता है । अभी क्या हुआ ? तथा कल्पवृक्ष अनेक भोजन, प्रकाश, आदिके साधनोंको दे देते हैं । इसमें कौन बडा भारी चमत्कारका हौआ बैठा है ! हम दिन रात देखते हैं, अडहर एक वर्षसे कुछ कममें फलती है । गेहूँ छह महीने फलते हैं । बाजरा तीन महीनेमें फलता है । गाजर डेढ महीनेमें तैयार हो जाती है। पोदीना पन्द्रह दिनमें उग जाता है । घास या मेथी और भी कमती दिनोंमें उपज आते हैं । इसी प्रकार घटते घटते कल्पवृक्षसे अंतर्मुहूर्तमें पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं । यहां हमें कारण कुछ अधिक मिलाने पडते हैं। किन्तु भोगभूमिमें थोडेसे कारण मिलानेपर ही उनके पुण्य अनुसार झठ पदार्थ मिल जाता है । जैसे कि मारवाडी कुयेंमेंसे पानी निकालनेके लिये लम्बी रस्सी, कलशा, गरौं, आदि कारण जुटाने पडतें हैं। किन्तु स्वल्प गहरे कुए या नदी अथवा नलमेंसे झट पानी निकाल लिया जाता है। पुरानी चालके अनुसार दीपक जलानेके लिये तेल, बत्ती, पात्र, चकमकपत्थर, सूत आदिकी आवश्यकता पडती है। किन्तु बिजलीका दीपक बटन दबानेसे ही प्रद्योतित हो आता है। खांड, वर्तन, कपडे, गृह, गहने, आदिक भी मशीनसे अति शीघ्र बनाये जा सकते हैं। हां, अनेक कार्योको करनेके लिये उन कारणोंकी भी आवश्यकता है, जो कि हमारी बहिरंग इन्द्रियोंके विषय नहीं हैं, अथवा यहां विद्यमान नहीं हैं। तभी बे कार्य यहां नहीं हो सकते हैं। केसर सर्वत्र नहीं उपज पाती है। वस्तुओंके स्वात्मभूत हो रहे अनेक स्वभाव भी नाना कार्योको कर रहे हैं । निमित्त नैमित्तिक संबंध अचिन्त्य है । प्रकरणमें नियत स्मृति होनेका कारण स्मृतिज्ञानावरणका क्षयोपशम विशेष है। उसमें अन्य अध्ययन, अभ्यास, आदिक सभी हेतु व्यभिचारी हो रहे भली भांति देखे जा रहे हैं । स्मरणका अंतरंग अव्यभिचारी कारण योग्यतारूप क्षयोपशम ही है । तभी तो एक विद्यालयमें एक ही गुरुसे पढे हुये एक श्रेणीके छात्रोंकी व्युत्पत्ति अपने अपने क्षयोपशम अनुसार न्यून, अधिक है।
__स्मरणस्य हि नानुभवनमात्रं कारणं सर्वस्य सर्वत्र स्वानुभूतेर्थे स्मरणप्रसंगात् । नापि दृष्टसजातीयदर्शनं तस्मिन् सत्यपि कस्यचित्तदनुपपत्तेर्वासनामबोधः कारणमिति चेत, कुतः स्यात् । दृष्टसजातीयदर्शनादिति चेन, तद्भावेपि तदभावात । एतेनार्थित्वादिस्तद्धेतुः प्रत्याख्याता, सर्वस्य दृष्टस्य हेतोर्व्यभिचारात् ।
__पदार्थोका पहिली अवस्थामें प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, आदिरूप केवल अनुभव कर लेना ही स्मरणका कारण नहीं है । यों तो सब जीवोंको सभी अपने अनुभूत विषयोंमें स्मरण होनेका