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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
तेनं लूनपुनर्जातमदनांकुरगोचरं । सादृश्यप्रत्यभिज्ञानं प्रमाणं नैकतात्मनि ॥ ३९ ॥ एकत्वगोचरं च स्यादेकत्वे मानमंजसा । न सादृश्ये यथा तस्मिंस्तादृशोयमिति ग्रहः ॥४०॥
वह प्रत्यभिज्ञान दो प्रकारका है । पहिला तो भूत और वर्तमानकालकी पर्यायोंमें रहनेवाले एकपनको विषय करनेवाला रूपसे निश्चित हो रहा एकत्व प्रत्यभिज्ञान है । और दूसरा दृष्ट और दृश्यमान पदार्थोंमें सादृश्यको विषय करनेवालापनसे निर्णीत हो रहा सादृश्य प्रत्यभिज्ञान है। यह प्रत्यभिज्ञान अनेक धर्मोकी युगपत प्राप्ति होजानारूप संकर दोष और परस्परविषयोंमें गमन करनारूप व्यतिकर दोषसे दूर रहनेके कारण यथार्थरूपसे ठीक उसी वस्तुकी ज्ञप्तिको करा देता है । तिस कारण काट दिये गये किन्तु पुनः उत्पन्न हो गये ऐसे केश, नख, औषधी, आदिको विषय करनेवाला सादृश्य प्रत्यभिज्ञान उनके एकपनस्वरूपको जाननेमें प्रमाण नहीं है । अर्थात् काटे जाचुके पीछे नये दूसरे उत्पन्न हुये केशोंको कतरनेके लिये कैंचीकी समर्थताका प्रश्न होनेपर ये वे ही केश हैं, जो एक मास पहिले कतरे थे यों परमार्श हो जाता है । किन्तु विचार किया जाय तो वे पहिले केश तो कूडे में पडकर धूरे पर पहुंच चुके हैं । ये सन्मुख स्थित होरहे तो न्यारे नये उत्पन्न हुये केश हैं । अतः इनमें सदृशपनेका प्रत्यभिज्ञान तो " ये उनके सरीखे हैं " ठीक है। किंतु " वे के वे ही ये केश हैं" यह प्रत्यभिज्ञानाभास है, ऐसे ही नखोंमें समझना । तथा सहारनपुरकी स्टेशनपर कोई यों कहे कि बम्बई ऐक्सप्रेस यह वही रेलगाडी है, जो कि पेशावरसे चलकर कल बम्बईको गई थी। यहां भी उस रेलगाडीके सदृश दूसरी गाडीमें एकपनको विषय करनेवाला प्रत्यभिज्ञान आभास है। इसी प्रकार कल और आजके देवदत्तमें एकपनको विषय करनेवाला प्रत्यभिज्ञान एकपनेमें तो निर्दोष प्रमाण है । किन्तु सदृशपनेमें प्रमाण नहीं है । जैसे कि तीसरे दिनके उसी सूर्यमें यह उसके सदृश है, ऐसा ग्रहण करना प्रत्यभिज्ञानाभास है । भावार्थ-युगल पैदा हुये दो समान लटकोंमें उसीको उसके सदृश और दूसरे सदृशको वही कहना सादृश्य प्रत्यभिज्ञानाभास और एकत्व प्रत्यभिज्ञानाभास है । झूठे ज्ञानोंको समीचीन ज्ञानोंसे मिन समझना चाहिये । - नवं सादृश्यैकत्वमत्यभिज्ञानयोः संकरव्यतिकरव्यतिरेको लौकिकपरीक्षकयोरसिद्धोऽन्यत्र विभ्रमात् । ततो युक्तं खविषये नियमेन प्रवर्तकयोः प्रमाणत्वं प्रत्यक्षादिवत् ।
इस प्रकार सादृश्य और एकत्वको जाननेवाले प्रत्यभिज्ञानोंमें एकम एक हो जाना या कुछ धर्माका परस्पर बदल जानारूप इन दो दोषोंका रहितपना लौकिक और परीक्षक जनोंको असिद्ध नहीं है। भमज्ञानसे रहित हो रहे अन्य अतिरिक्त सम्यग्नान स्थलोंपर सर्वत्र ठीक प्रतीति हो