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तत्वार्यचिन्तामणिः
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जाती है अर्थात् कोई मूर्ख बुध्दू भले ही उसीके सदृशको वही और उसीको उसके सदृश जान ले, किन्तु विचारशील पुरुष ऐसी मोटी भूल नहीं कर बैठते हैं। तभी पतिव्रतापन, अचौर्य धर्म, सत्यत्रतोंकी स्वरक्षा हो पाती है । एक व्यभिचारिणी स्त्रीनें ब्रह्माद्वैतका पक्ष लेकर अपनी इष्टसिद्धि के लिये सखीसे कहा था कि " ब्रह्मैव सत्यमखिलं न हि किंचिदस्ति । तस्मान्न मे सखि परापर भेदबुद्धिः । जारे तथा निजपतौ सदृशोऽनुरागो लोकाः किमर्थमसतीति कदर्थयन्ति " । किंतु ऐसा संकरपना जैन सिद्धान्तमें इष्ट नहीं किया है । तथा एक स्वार्थीने दूसरेका धन अपहरण करनेके लिये " परद्रव्येषु लोष्ठवत् आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः " कहकर अपना प्रयोजन गांठा था । परन्तु ऐसा व्यतिकरपना भी आईतोंको अभिमत नहीं है । श्री अकलंकदेवने " स्वपरादानापोहनव्यवस्थापाद्यं हि वस्तुनो वस्तुत्वं " अपने स्वरूपका ग्रहण करना और परके स्वरूपका त्याग करना ही वस्तुका वस्तुपन कहा है । तिस कारण अपने अपने विषयमें नियमसे प्रवृत्ति करानेवाले दोनों प्रत्यभिज्ञानको प्रत्यक्ष, अनुमान, आदिके समान प्रमाणपना युक्त है । प्रवर्तकपनका अर्थ तो प्रवृत्ति करने योग्य विषयको प्रदर्शित करदेना मात्र है । प्रमेयमें प्रवृत्ति होना तो इच्छा, पुरुषार्थ, योग्यता आदिके अनुसार पीछे होती रहेगी या नहीं भी हो, ज्ञान इसका उत्तरदायी नहीं है ।
तदित्यतीतविज्ञानं दृश्यमानेन नैकतां ।
वेति नेदमिति ज्ञानमतीतेनेति केचन ॥ ४१ ॥ तत्सिद्धसाधनं ज्ञानद्वितयं ह्येतदिष्यते । मानदृष्टेर्थपर्याये दृश्यमाने च भेदतः ॥ ४२ ॥ द्रव्येण तद्बलोद्भूतज्ञानमेकत्वसाधनम् । दृष्टेक्ष्यमाणपर्यायव्यापिन्यन्यत्ततो मतम् ॥ ४३ ॥
स्मरण ) भूत
पाता है । तथा
वर्तमान अर्थके
कोई कहते हैं " वह था " ऐसा भूतपदार्थको जाननेवाला विज्ञान अर्थके प्रत्यक्ष द्वारा देखे गये वर्त्तमान अर्थके साथ हो रहे एकपनेको नहीं जान "6 यह है " ऐसा वर्त्तमानको जाननेवाला प्रत्यक्षज्ञान अतीत पदार्थके साथ हो रहे एकपनको नहीं जान सकता है । प्रत्यक्षज्ञान अविचारक है, इस प्रकार कोई हैं । प्रन्थकार कहते हैं कि वह किसीका कहना हमको सिद्धसाधन है। वर्त्तमान अर्थको जाननेवाले ये दो स्मरण और प्रत्यक्षज्ञान हैं। क्योंकि पूर्वमें
साधु विद्वान् कह रहे
कारण कि भूत और
धारणा ज्ञान से देखे
हुये अपर्याय और वर्त्तमानमें देखे जा रहे अर्थपर्याय में विषयभेद रूपसे दो ज्ञान वर्त्तरहे हैं ।
एक दूसरे के विषयको नहीं छू सकते हैं। हां, उन दोनों ज्ञानोंकी तीसरा प्रत्यभिज्ञान तो देखी जा चुकी और देखी जा रही पर्यायोंमें
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सामर्थ्यसे पश्चात् उत्पन्न हुआ द्रव्यरूपसे व्याप रहे एकत्वको