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ततार्थ लोकवार्तिके
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स्व और अर्थका प्रकाशकपना होनेसे यदि अनुमानको प्रमाण कहोगे तब तो तिसी प्रकार स्वपरप्रकाशक होनेसे स्मृति भी प्रमाण हो जाओ । हां, ज्ञानभिन्न अभिलाषा, पुरुषार्थ, आदिक तो उस स्वार्थके प्रकाशकपनका अभाव हो जानेसे प्रमाण नहीं हो सकते हैं, अचेतन पदार्थ प्रमाण नहीं हैं।
.स्वार्थप्रकाशकत्वं प्रवर्तकत्वं न तु प्रत्यक्षार्थप्रदर्शकत्वं नाप्यर्थाभिमुखगतिहेतुत्वं तच्चानुमानस्यास्तीति प्रमाणत्वे स्मरणस्य तदस्तु त एव नाभिलाषादेस्तदभावात् । न हि यथा स्मरणं स्वार्थस्मर्तव्यस्यैव प्रकाशकं तथाभिलाषादिस्तस्य मोहोदयफलत्वात् ।
स्व और अर्थका प्रकाशकपना ही ज्ञानमें प्रवर्तकपना है । प्रत्यक्ष किये गये अर्थकी प्राप्तिमें उपयोगी झांकी करा देनापन ज्ञानकी प्रवर्तकता नहीं है । तथा अर्थकी ओर सन्मुख गति करानेका कारणपना भी ज्ञानकी प्रवर्तकता नहीं है । सर्वज्ञ प्रत्यक्षसे या अष्टमहानिमित्त, ज्योतिष, मंत्र, स्वप्न आदि ज्ञानोंसे भूत, भविष्यत् या देशांतरोंके पदार्थीका ज्ञान हो जाता है । उनकी प्रदर्शिनी या उनको पकडनेके लिये गति तो नहीं होती है । अतः स्वार्थका प्रकाश कर देना ही ज्ञान द्वारा साध्य कार्य है । वस्तुतः ज्ञान करा देना ही गुरुतर कार्य था। धनार्थीको धन दीख जाना ही अत्यन्त कठिन कार्य है । उसका प्राप्त करलेना तो अतीव सुलभ है। सो वह स्वार्थका प्रकाशकपन अनुमानके भी है । इस कारण यदि अनुमानको प्रमाण माना जायगा तो तिस ही कारण स्मरणको भी वह प्रमाणपना व्यवस्थित हो जाओ । हां, अभिलाषा चलना, हाथ पसारना, आदिक तो प्रमाण नहीं है। क्योंकि उनमें स्व और अर्थका प्रतिभास करादेनापन नहीं है । देखिये, जैसे स्मृति स्मरण करने योग्य स्वार्थोकी ही प्रकाशिका है, तिस प्रकार अभिलाषा, रति, लोभवृत्ति आदिक परिणतियां स्वार्थोकी ज्ञप्ति नहीं कर पाती हैं। क्योंकि वे अभिलाषा आदिक तो मोहनीयकर्मके उदय होनेपर आत्माके विभावभावरूप फल हैं । ज्ञानस्वरूप या चेतनस्वरूप पदार्थ नहीं है । किन्तु स्वार्थीका प्रकाश करना तो ज्ञानावरणके क्षयोपशम या क्षय हो जानेपर आत्मका स्वभाविक
परिणाम है।
समारोपव्यवच्छेदस्समः स्मृत्यनुमानतः । "स्वार्थे प्रमाणता तेन नैकत्रापि निवार्यते ॥ २१ ॥
स्मृतिज्ञान, और अनुमानज्ञानसे समारोपका व्यवच्छेद होना भी समान . है। तिस कारण स्वार्थोके जाननेमें प्रमाणपना दोनों से किसी एकमें भी नहीं रोका जा सकता है । अर्थात् संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय, अज्ञान, स्वरूप समारोपका व्यवच्छेद करनेवाले होनेसे स्मृति, और अनुमान दोनों मी प्रमाण हैं।