________________
द्वारा जिसका विषय गृहीत नहीं हुआ ( अछता ) होय, उसीको प्रमाता माननेका यह आग्रह तो चार्वाक बनजानेपर ही शोमता है।
योपि प्रत्यक्षमनुमानं च प्रवर्तकं प्रमाणमिति मन्यमानः स्मृतिमूलस्यामिकापा. देरिव व्यवहारप्रवचेहेतोः प्रत्यक्षमूलस्मरणस्यापि प्रमाणतां प्रत्याचक्षीत सोनुमानमपि प्रत्यक्षात्पृथक्पमाणं मामस्त तस्य प्रत्यक्षमूलत्वात् । न अप्रत्यक्षपूर्वकमनुमानमस्ति । अनुमानांतरपूर्वकमस्तीति चेन, तस्यापि प्रत्यक्षपूर्वकत्वात् । सुदरमपि गत्वा तस्यामत्यक्ष पूर्वकत्वेऽनवस्थाप्रसंगात् । तत्पूर्वकत्वे सिद्ध प्रत्यक्षपूर्वकमनुमानमिति न प्रमाणं स्यात् । ततश्च पापकत्वप्राप्तिरस्य ।
जो भी वादी प्रत्यक्ष और अनुमान ये दो प्रवृत्ति करा देनेवाले प्रमाण है, इस प्रकार मान रहा है, और मूलभूत स्मृतिके निमित्त कारणसे हुयीं अभिलाषा आदिकसे व्यवहारकी प्रवृत्ति होती है। उसके हेतु अभिलाषा आदिको जैसे प्रमाणपना नहीं माना गया है, वैसे ही प्रत्यक्षको मूल कारण स्थापकर हुये स्मरणकी भी प्रमाणताका प्रत्याख्यान करेगा। वह बौद्ध तो अनुमानको भी प्रत्यक्षसे न्यारा प्रमाण नहीं मान सकेगा। क्योंकि उस अनुमानका मूलकारण प्रत्यक्ष है। प्रत्यक्षको कारण नहीं मानता हुआ कोई भी अनुमान संसारमें नहीं है । यदि कोई यहां यों कहे कि अनुमानके पीछे होनेवाला दूसरा अनुमान तो प्रत्यक्षपूर्वक नहीं है । धूमका प्रत्यक्ष कर उत्पन हुये अनिके अनुमानसे पुनः उस स्थानकी उष्णताका अनुमान होता है । प्रकृत देशसे देशांतरमें गमन करनेसे सूर्यमें गतिका अनुमान कर पुनः उस अनुमानसे सूर्यमें अतीन्द्रिय ग्रमनशक्तिका अनुमान किया जाता है। लोकव्यवहारमें भी कहीं कहीं चार, पांचतक अनुमानों करके वस्तुका निर्णय करते हैं । अतः सभी अनुमान तो प्रत्यक्षपूर्वक नहीं हुये, ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो न कहना। क्योंकि दूसरे, तीसरे आदि अनुमानका भी परम्परासे कारण हो रहा प्रत्यक्ष ही है। बहुत दूर मी जाकर उस अनुमानको यदि प्रत्यक्षपूर्वक नहीं माना जायगा तो अनवस्था दोषका प्रसंग होगा। क्योंकि व्याप्ति या हेतुको अनुमान द्वारा जानते जानते आकांक्षाकी निवृत्ति नही होवेगी। हां, यदि दूर भी जाकर किसी अनुमानके पूर्वमें हुये प्रत्यक्षको कारणपमा सिद्ध मानलोगे तो प्रत्यक्षपूर्वक अनुमान बन गया । इस प्रकार वह अनुमान अब आपके विलक्षण विचार अनुसार प्रमाण नहीं हो सकेगा । और तैसा होनेसे इस बौद्धवादीको अपने ही मतका स्वयं बाधकपना प्राप्त होता है। अनुमानप्रमाण हाथसे निकला जाता है। . स्वार्थप्रकाशकत्वेन प्रमाणमनुमा यदि ।
स्मृतिरस्तु तथानाभिलाषादिस्तदभाक्तः ॥२०॥