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तत्वार्थ लोकवार्तिके
तस्मात्प्रवर्त्तकत्वेन प्रमाणत्वेत्र कस्यचित् । स्मृत्यादीनां प्रमाणत्वं युक्तमुक्तं च कैश्चन ॥ १२ ॥ अक्षज्ञानैरनुस्मृत्य प्रत्यभिज्ञाय चिंतयेव । आभिमुख्येन तद्भेदान् विनिश्चित्य प्रवर्त्तते ॥ १३ ॥
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तिस कारण यहाँ प्रकरण में अर्थ में प्रवृत्तिको करानेवाला होनेसे किसी ज्ञानको यदि प्रमाणपना माना जायगा तत्र तो स्मृति, संज्ञा, आदिकों को भी प्रमाणपना बन जायगा, यह किन्हीं प्रविष्ट विद्वानोंके द्वारा कहा गया मन्तव्य युक्तिपूर्ण है । इन्द्रियजन्य ज्ञानों करके मोदक आदि अर्थों में प्रवृत्ति होती है । उतरते समय नसेनीके डन्डोंका स्मरण कर मनुष्य पग धरनेमें प्रवृत्ति करता है । रोगी पुरुष पूर्वमें आरोग्य करा चुकी औषधिका प्रत्यभिज्ञान कर अवययी पिण्ड में से थोडीसी निकाली हुई उसी औषधिका अथवा उसके सदृश बनायी हुई दूसरी औषधिका सेवन करता है। तर्कज्ञानों से धूम, अग्नि, आदिका साहचर्य ग्रहणकर चिंता करेगा और उसके योग्य कार्यको करेगा तथा अर्थकी अभिमुखता करके उसके भेदोंका विशेष निश्चयकर अग्नि आदि साध्य में अनुमान द्वारा प्रवृत्ति करता है । तथा आप्तवाक्यद्वारा वाच्य अर्थको निर्णयकर देशांतरको गमन करने या रसायन बनाने में प्रवृत्ति करता है । इस प्रकार साक्षात् या परंपरासे प्रवृत्ति करादेनापन स्मृति आदिकोंकी प्रमाणताका भी प्रयोजक हो जावेगा, कोई निषेधक नहीं है ।
अक्षज्ञानैर्विनिश्चित्य प्रवर्तत इति यथाप्रत्यक्षस्य प्रवर्तकत्वमुक्तं तथा स्मृत्वा प्रवर्तत इति स्मृतेरपि प्रत्यभिज्ञाय प्रवर्तत इति संज्ञाया अपि चिन्तयन् तत् प्रवर्तत इति तर्कस्यापि आभिमुख्येन तद्भेदान् विनिश्चित्य प्रवर्तत इत्यभिनिबोधस्यापि ततस्ततः प्रतिपत्तुः प्रवृत्तेfarara माकांक्षानिवृत्तिघटनात् ।
इन्द्रियजन्य ज्ञानों द्वारा विशेष निश्चय करके दृष्टा जीव भोजन आदिमें प्रवृत्ति करता है । इस प्रकार जैसे प्रत्यक्षको प्रवर्त्तकपना कहा है, तिस ही प्रकार स्मृतिज्ञानसे भी पदार्थका स्मरणकर जीव प्रवर्त्तता है । अत: स्मृतिको भी प्रवर्त्तकपना हो जाओ । प्रत्यभिज्ञान कर भी प्रवृत्ति करता है, अतः संज्ञाको भी प्रवर्त्तकपना हो जाओ । उस प्रत्यभिज्ञानसे जाने हुये की चिंतना करता हुआ प्रवृत्ति करता है । इस ढंगसे तर्कको भी प्रवर्त्तकपना होजाओ । तथा व्याप्तिज्ञान से संबंधका ग्रहणकर अभिमुखपने करके उसके भेदोंका विशेष निश्चय कर अनुमाता प्रवर्त्त रहा है । इस कारण अभिनिबोध यानी स्वार्थानुमान को भी प्रवर्त्तकपना है । तिस तिस ज्ञानसे प्रतीति करनेवाले प्रतिपत्ताकी प्रवृत्ति हो रही है । प्रतिभासका अतिक्रमण नहीं कर यानी स्मृति आदिकोंसे हुये प्रतिभासों के अनुसार आकांक्षाओंकी निवृत्ति होना घटित हो रहा है । जिज्ञासित पदार्थकी आकांक्षाको निवृत्ति