________________
२०२
तत्वार्यलोकवार्तिक
ऊहापोहात्मिका प्रज्ञा चिंताया प्रकारः प्रतिमोपमा च सादृश्योपाधिके वस्तुनि केषां चिद्वस्तूपाधिके वा सादृश्ये प्रवर्चमाना संज्ञायाः सादृश्यमत्यभिज्ञानरूपायाः प्रकारः, संभवार्थापत्यभावोपमास्तु लैंगिकस्य प्रकारस्तथामतीतेः।
भूत, भविष्यत् , देशांतरवर्ती, स्वभावविप्रकृष्ट, आदि पदार्थोंका समीचीनरूपसे तर्क, वितर्क संकल्प करनास्वरूप प्रज्ञा तो व्याप्तिज्ञानरूप चिंताका प्रकार है । और प्रसाद गुणसे युक्त हुई नवीन नवीन अर्थोके ज्ञानको उघाडनेवाली प्रतिमा भी चिंताका प्रकार है, जैसे कि अहिंसाके भेद समिति, गुप्ति, आदिक हैं। तथा सादृश्य विशेषणवाली वस्तुमें अथवा गौके विशेषण हो रहे सादृश्यमें किन्हीं किन्हीं जीवोंके प्रवर्त्त रहा उपमान तो सादृश्यका प्रत्यभिज्ञान करनेवाली संज्ञाका प्रकार है । अर्थात् गौके सदृश गवय होता है । इस वृद्धवाक्यका स्मरण कर अरण्यमें रोझको देखता हुआ पुरुष अनेन सदृशो गौः इसके सदृश गौ है, अथवा इसका सादृश्य गौमें है, गवय. निरूपितं गोनिष्ठं सादृश्यं ऐसा उपमान ज्ञान कर लेता है। ये दोनों प्रकारकी उपमा संज्ञाका प्रभेद हैं। जैसे कि मिष्टान्नके मोदक, पेडा, बर्फी, मगद, आदिक प्रभेद हैं । सम्भवज्ञान, अर्थापत्ति, अमाव प्रमाण, और कोई कोई उपमानप्रमाण तो लिङ्गजन्य अनुमानके भेद प्रभेद हैं। जैसे कि आमोंका प्रकार लंगडा, मालदा, तोताफरी, हाथी झूल, कलमी, आदि हैं। क्योंकि तिस प्रकार प्रतीतिमें आ रहे हैं।
प्रत्येकमिति सदस्य ततः संगतिरिष्यते। समाप्तौ चेति शद्बोयं सूत्रेस्मिन्न विरुध्यते ॥ ८॥
तिस कारण प्रकार अर्थवाले इति शब्दकी मति, स्मृति आदि प्रत्येकमें संगति कर लेना इष्ट की गई है। तभी तो मति आदिके उक्त प्रकार संभवते हैं। तथा समाप्ति अर्थमें प्रवर्स रहा यह इति शब्द भी इस सूत्रमें कोई विरोधको प्राप्त नहीं हो रहा है। इस प्रकार मतिज्ञान समाप्त हो गया यह अर्थ भी ठीक है। थोडे शब्दोंमें बहुत अर्थोको प्रतिपादन करनेवाले सूत्रकारको यह भी अर्थ अभीष्ट है।
मतिरिति स्मृतिरिति संज्ञेति चिंतेत्यभिनिबोध इति प्रकारो न तदर्यान्तरमेव मतिज्ञानमैकमिति ज्ञेयं । मत्यादिभेदं मतिज्ञानं मतिपरिसमाप्तं तद्भेदामामन्येषामत्रैवांतर्भावादिति व्याख्येयं गत्यंतरासंभवात् तथा विरोधाभावाच ।
कौओंसे दहीकी रक्षा करना यहां कौआ पदसे दहीको बिगाडनेवाले चील, बिल्ली, कुत्ता आदिका उपलक्षण है । इसी ढंगसे मति इस प्रकारके ज्ञान, स्मृति, इस प्रकारके और भी ज्ञान, संज्ञा इस प्रकारके अन्यज्ञान, चिंताकी जातिके ज्ञान, और अनुमान के भेदप्रभेदरूपकान, ये सब