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तत्वार्थचिन्तामणिः
यदेव हि संकेतस्मरणोपायं दृष्टसंकल्पनात्मकं कल्पनं तदेव पूर्वापरपरामर्शशून्ये चाक्षुषे स्पर्शनादिके वा दर्शने विरुध्यते । न चेयं विशदावभासार्थ व्यवसितिस्तथा, ततो युक्ता सा प्रत्यक्षे ।
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जो ही देखे हुये पदार्थ में संकेतस्मरणको उपाय मान कर इष्ट, अनिष्ट, मेरा, तेरा, आदि संकल्प करना रूप कल्पना है, वही कल्पना पहिले पीछेके प्रत्यभिज्ञान तर्क, आगम, आदि विचारक ज्ञानोंसे रहित हो रहे चाक्षुषप्रत्यक्ष अथवा स्पार्शन आदि प्रत्यक्षोंमे विरुद्ध पडती है । अर्थात् प्रत्यक्षज्ञान विचार करनेवाला नहीं है । रूप, रस, स्पर्श, आदिकी प्रत्यक्ष करके शीघ्र ही साकार ज्ञप्ति हो जाती है। यह उससे बढिया है, वह इससे दूर है, यह अधिक पीला है, वह इससे न्यून मीठा था, यह बम्बईका बना है । यह वैसा नहीं है, इत्यादि परामर्श करनेवाले श्रुतज्ञान पीछेसे होते रहते हैं । प्रत्यक्षोंमें इन विचारोंका अंश मात्र भी नहीं है । यह बात अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञानमें भी लागू होती है । वे भी ज्ञान विचारक नहीं हैं । किन्तु विशद प्रकाश रूपसे अर्थका निर्णय करनारूप यह कल्पना तो तिस प्रकार परामर्श करनेवाली नहीं है । तिस कारण वह स्वार्थ निर्णयरूप कल्पना प्रत्यक्षज्ञानमें हो रही समुचित है । समर्थज्ञानोंमें, कल्पनायें ठहरती हैं ।
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कुतः पुनरियं न संकेतस्मरणोपायेत्युच्यते ।
यह प्रत्यक्षमें हो रही कल्पना फिर शद्व संबंधी संकेतस्मरणके निमित्तसे उत्पन्न हुई कैसे नहीं है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर आचार्यों द्वारा ही उत्तर कहा जाता है ।
स्वतो हि व्यवसायात्मप्रत्यक्षं सकलं मतम् ।
अभिधानाद्यपेचायामन्योन्याश्रयणात्तयोः ॥ २१ ॥
शद्वयोजना, संकेतस्मरण करना आदिकी नहीं अपेक्षा कर उत्पन्न हुये सम्पूर्ण प्रत्यक्ष स्वयं अपने आपसे निर्णयस्वरूप माने गये हैं । यदि उन प्रत्यक्ष और निर्णय दोनों को भी अभिधान आदिक की अपेक्षा मानी जायगी, ऐसा होनेपर तो अन्योन्याश्रय दोष होगा । अर्थात् निश्चय हो चुकनेपर शव लगाया जाय और शब्द योजना हो चुकनेपर निर्णय किया जाय, ऐसे अन्योन्याश्रय दोषवाले कार्य जगत् में घटित नहीं होते हैं ।
सति ह्यभिधानस्मरणादौ कचिद्वयवसायः सति च व्यवसाये ह्यभिधानस्मरणादीति कथमन्योन्याश्रयणं न स्यात् । स्वाभिधानविशेषापेक्षा एवार्थनिश्चयैर्व्यवसीयते इति ब्रुवनार्थमध्यवस्यस्तदभिधानविशेषस्य स्मरति अननुस्मरन्न योजयति अयोजयन्न व्यवस्यतीत्यविकल्प जगदर्थयेत् । स्ववचनविरुद्धं चेदं । किंच
वाचक शब्द्वका स्मरण करना आदिके होनेपर कहीं घट, पट, आदिमें निर्णय होना बने और निश्चय हो चुकनेर वाचक शद्वका स्मरण आदिक होय, यानी घट अर्थको देखकर ही पहिले कालमें