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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिक
यहां यदि परोक्ष अनुमान ज्ञानको निर्विषय माना जायगा तो प्रत्यक्ष भी निर्विषय हो जावेगा। अथवा दुष्टजीवोंको विपर्यय ज्ञान हो जावेगा । खोटा अभिप्राय रखनेवाले चाहे जैसा गढकर अर्थका अनर्थ कर सकते हैं। कल्पित दृष्टान्त है कि एक भेडिया नदीके ऊपर भागमें जल पी रहा था और बकरीसे कहा, क्योंरी, झूठा यानी मैला पानी इधर बहारही है, तेरा चचा मी ऐसा बुरा कार्य किया करता था। बेचारी बकरीने कहा महाराज ! मैं तो नीचेकी ओर पानी पी रही हूं नीचेका पानी कहीं ऊपर चढता है ? और मेरा चचा तो था ही नहीं । इसपर भेडियेने कहा तू बडी नीच है। उत्तर देती है, मुंह लेती चली आती है। ले दण्ड भोग, ऐसा कहकर बकरीको मार डाला।
कथं सालंबनत्वेन व्याप्तं प्रमाणत्वमिति चेत्
विषय सहितपने ( साध्य ) के साथ प्रमाणपना हेतु केसे व्याप्तियुक्त है ! ऐसी यदि शंका करोगे तो यह उत्तर है।
अर्थस्यासंभवेऽभावात्लत्यक्षेपि प्रमाणताम् । ततो व्याप्तं प्रमाणत्वमर्थवत्वेन मन्यताम् ॥ २१ ॥ प्राप्यार्थापेक्षयेष्टं चेत्तथाध्यक्षेपि तेस्तु तत् । तथा चाध्यक्षमप्यथोनालंबनमुपस्थितम् ॥ २२ ॥
तुम बौद्धोंके यहां अर्यके असम्भव होनेपर प्रत्यक्षमें भी प्रमाणपनेका अभाव है। तिस कारण अर्थसहितपनेके साथ प्रमाणपना व्याप्त हो रहा मान लो । यदि प्राप्ति करने योग्य अर्थकी अपेक्षासे अनुमानमें अर्थसहितपना इष्ट करोगे तो तुम बौद्धोंके यहां प्रत्यक्षमें भी तिस प्रकार प्राप्य अर्थकी अपेक्षासे वह प्रमाणपना इष्ट किया जाय, किन्तु अवलम्ब कारणकी अपेक्षा अर्थसहितपना प्रत्यक्षमें नहीं माना जाय और तिस प्रकार होनेपर प्रत्यक्षप्रमाण भी अर्थको नहीं आलम्बन करनेवाला उपस्थित हुआ, जो कि आप बौद्धोंको अमीष्ट नहीं है।
प्रत्यक्षं यद्यवस्त्वालंबनं स्याचदा नाचे प्रापवेदिति चेत्
प्रत्यक्षप्रमाण यदि वस्तुभूत स्वलक्षणको आलंबन न करेगा तब तो वह अर्थको प्राप्त नहीं करा सकेगा। अतः प्रत्यक्ष तो वस्तुको आलम्बन कारण मानकर उत्पन्न होता है । अन्यज्ञान नहीं, यदि बौद्ध ऐसा कहेंगे तो-।
अनुमानमवस्त्वेव सामान्यमवलंबते।। प्रापयत्यर्थमित्येतत्सचेता नाद्य मोक्ष्यते ॥ २३ ॥