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सायचिन्तामणिः
चूंकि जिस प्रकार स्मरण आदिको अविशद होनेके कारण प्रत्यक्षपना नहीं है, तिस ही प्रकार लिंग और शब्दसामग्रीका सहकृतपना न होनेसे अनुमान और आगमपन भी नहीं है। साथहीमें सम्वादक होनेके कारण अप्रमाणपना भी नहीं है । अतः स्मृति, प्रत्यभिज्ञा और तर्कको तीन प्रमाणोंसे अतिरिक्त चौथा आदि प्रमाणपना सुलभतापूर्वक प्राप्त हो जाता है । इस कारण तीन ही प्रमाण हैं । यह संख्या तुमने अच्छी प्रतिष्ठित की अर्थात्-उपहासपूर्वक व्यंग्यकर प्रमाणकी तीन संख्याका सिद्ध न होना कह दिया है।
एतेनैव चतुःपंचषट्प्रमाणाभिधायिनां ।
स्वेष्टसंख्याक्षति या स्मृत्यादेस्तद्विभेदतः ॥ १७९ ॥
इस कथन करके ही यानी स्मृति आदिकोंको भिन्न प्रमाणपना सिद्ध हो जानेसे और स्वीकृत प्रमाणोंमें अन्तर्भाव न होनेसे ही चार, पांच, छः, सात, आठ प्रमाणोंको कहनेवाले वादियोंकी मानी हुयी अपनी अभीष्ट संख्याकी क्षति होगयी समझलेनी चाहिये । क्योंकि स्मृति आदिक उन माने हुये नियत प्रमाणोंसे विभिन्न होते हुये सिद्ध हो चुके हैं।
येप्यभिदधते प्रत्यक्षानुपानोपमानशद्वाः प्रमाणानि चत्वार्येवेति सहापत्त्या पंचैवेति वा सहाभावेन षडेवेति वा, तेषामपि खेष्टसंख्याक्षतिः प्रमाणत्रयवादीष्टसंख्यानिराकरणेनैव प्रत्येतव्या । स्मृत्यादीनां ततो विशेषापेक्षयार्थातरत्वसिद्धेः। न ह्युपमानेपत्त्यामभावे वा स्मृत्यादयोंतर्भावयितुं शक्याः सादृश्यादिसमध्यनपेक्षत्वात् उपमानार्थापत्तिरूपत्वेनवस्थाप्रसंगात् । अभावरूपत्वे सदंशे प्रवर्तकत्वविरोधात् । ___ जो भी नैयायिक प्रभृतिवादी यों कह रहे हैं कि प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और शब्द ये चार ही प्रमाण हैं । यह न्यायदर्शनका तीसरा सूत्र है। अथवा इन चारको अर्थापत्तिके साथ मिलाकर पांच ही प्रमाण हैं, ऐसा प्रभाकर, मीमांसक कहरहे हैं । तथा इन पांचको अभावके साथ मिलाकर छह ही प्रमाण हैं, इस प्रकार जैमिनि मान रहे हैं। कोई कोई सम्भव, इतिहास, प्रतिभा आदिको भी इनसे न्यारे प्रमाण मान रहे हैं । सौमें पचास हैं, पांचसेर दूधमें ढाईसेर दूध है, यह सम्भव है। इस वटवृक्षपर यक्ष रहता है ऐसा वृद्ध पुरुष कहते आये हैं, यह इतिहास है। कल मेरा भाई आवेगा, चांदी मद्दी होगी यह प्रतिभा है, इत्यादि । आचार्य कहते हैं कि उन सबकी मी अपने अभीष्टसंख्याकी क्षति इस तीन प्रमाण प्रत्यक्ष अनुमान और आगमको माननेवाले वादीकी इष्ट संख्याके निराकरण करदेनेसे ही समझलेना चाहिये । स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्कोको विशिष्ट अर्थोके ग्रहण करनेकी अपेक्षासे उन प्रमाणोंसे भिन्न प्रमाणपना सिद्ध है। नैयायिक आदिकोंके अतिरिक्त माने गये उपमानप्रमाण या अर्थापत्ति अथवा अभावमें तो स्मृति आदिकोंका अन्तर्भाव नहीं किया जा सकता है । क्योंकि उपमानकी सामग्री सादृश्य और अर्थापत्तिकी सामग्री