________________
तत्त्वार्थ लोकवार्तिके
प्रत्यक्षं विशदं ज्ञानं योगीतरजनेषु चेत् । स्मरणादेरवेशद्यादप्रत्यक्षत्वमागतम् ॥ १७७॥
इन्द्रियजन्य या संनिकर्षजन्य अथवा योगज धर्मसे अनुग्रहको प्राप्त हुये मनसे उत्पन्न हुआ ज्ञान प्रत्यक्ष होता है । इन सब लक्षणोंको छोडकर यदि प्रत्यक्षका लक्षण विशदज्ञानको स्वीकार करोगे जो कि सर्वज्ञके प्रत्यक्षोंमें और अन्य संसारी जीवोंके प्रत्यक्षोंमें भले प्रकार घटित हो जाता है, तब तो स्मरण, प्रत्यभिज्ञान आदिको अविशद होनेके कारण अप्रत्यक्षपना आया, यानी स्मरण आदिक तो अब प्रत्यक्ष नहीं हो सकेंगे। परोक्ष हो जायेंगे।
विशदं ज्ञानं प्रत्यक्षमिति वचने स्मृत्यादेरप्रत्यक्षत्वमित्यायातं । तथा च प्रमाणांतरत्वं लैंगिक शारे वानंतर्भावादप्रमाणत्वानुपपत्तेः । कथम्
अन्य सजातीय विजातीय प्रतीतियोंके व्यवधानरहितपनेसे अर्थमें विशेष विशेषांशोंको स्पष्ट प्रतिभासन करनारूप वैशद्यको धारण करनेवाला ज्ञान प्रत्यक्ष है । इस प्रकार कहनेपर तो स्मृति आदिक ज्ञानोंको प्रत्यक्षरहितपना यह प्राप्त हुआ और तिस प्रकार होनेपर स्मृति आदिकको प्रत्यक्षसे भिन्न न्यारा प्रमाणपना मानना पडेगा । हेतुसे उत्पन्न हुये अनुमानप्रमाणमें अथवा शद्वजन्य आगम ज्ञानमें स्मृति आदिकोंका अन्तर्भाव नहीं होता है । तथा अप्रमाणपना भी नहीं बन पाता है। अतः वैशेषिक या बौद्धों तथा कापिलोंको स्मृति आदिक न्यारे परोक्ष प्रमाण कहने पडेंगे वे स्मृति आदिक अनुमान, आगमरूप कैसे नहीं है ? या अप्रमाण भी क्यों नहीं हैं ! ऐसी जिज्ञासा होनेपर उत्तर सुनिये ।
लिंगशब्दानपेक्षत्वादनुमागमता च न ।
संवादान्नाप्रमाणत्वमिति संख्या प्रतिष्ठिता ॥ १७८ ॥
स्मरण आदिको लिंगकी अपेक्षा नहीं होनेके कारण अनुमानपना नहीं है । शब्दकी संकेतस्मरण द्वारा सहकारिता न होनेके कारण आगमप्रमाणपना भी नहीं हैं। तथा सफलप्रवृत्तिको करनेवाले सम्बादीज्ञान होनेके कारण स्मरण आदिक अप्रमाण भी नहीं हैं । इस प्रकार आप लोगों द्वारा मानी गयी प्रमाणोंकी संख्या इस ढंगसे तो प्रतिष्ठित हो चुकी । अर्थात् –यों दो या तीन प्रमाणोंकी संख्या ठीक प्रतिष्ठित नहीं हुयी। यहां उपहास वचनसे निषेध करना ध्वनित हो जाता है । अथवा स्मृति, चिन्ता, संज्ञा आदिको न्यारा प्रमाण मानकर गिननेसे प्रमाणोंकी संख्या प्रतिष्ठित हो जाती है।
यथा हि स्मरणादेरविशदत्वान्न प्रत्यक्षत्वं तथा लिंगशद्धानपेक्षत्वान्नानुमानागमत्वं संवादकत्वानाप्रमाणत्वमिति प्रमाणांतरतोपपत्तेः मुप्रतिष्ठिता संख्या त्रीण्येव प्रमाणानीति ।