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कमी कमी बनता है । और दूसरे समय जब कि उस ही जीवके प्रेक्षाको आवरण करनेवाले कर्मका उदय है, सब अप्रेक्षावालेकी भी प्रामाण्यमस्त ज्ञानसे ही प्रवृत्ति हो सकेगी। जिससे कि नैयायिकोंके अनुसार संशयादिकसे भी प्रवृत्ति होना माना जाय । यानी संशय आदिकसे प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। बालक और मूर्योकी कथा निराली है । इस कारण लौकिकन्यवहारके प्रति बालक और पण्डित समान नहीं हैं। कोई बन्दर अच्छे होनेवाले फोडेका खोंट उतारकर खुजली मिटा लेता है। और फोडेको अच्छा नहीं होने देता है। किंतु विचारशाली मनुष्य इन क्रियाओंको नहीं करता है । अतः प्रवृत्तिसामर्थ्यसे ज्ञानके प्रमाणपनके निश्चयका लोकव्यवहारके अनुसार अनुवाद करना युक्त नहीं है।
कथमेवं प्रेक्षावतः प्रामाण्यनिधयेऽनवस्थादिदोषपरिहार इति चेत् ।
कोई शंकाकार कहता है कि इस प्रकार प्रेक्षावान् पुरुषके भी ज्ञानमें प्रमाणपनका निश्चय करनेमें अनवस्था, अन्योन्याश्रय, चक्रक, आदि दोषोंका परिहार कैसे होगा, बताओ ! अर्थात्-प्रकृत ज्ञानमें प्रमाणपनका निश्चय करनेके लिये अन्य सम्वादिज्ञान, प्रवृत्तिसामर्थ्य ज्ञान, फलज्ञान आदिकी आकांक्षा होगी और सम्वादीज्ञानमें प्रामाण्यके सम्पादनके लिये पुनः अन्य ज्ञानोंकी आवश्यकता पडेगी । यही ढंग चलता रहेगा, अतः अनवस्था है। और पूर्वज्ञानका प्रामाण्य निश्चय करनेके लिए दूसरे सम्वादी ज्ञानकी आकांक्षा होगी और सम्यादी ज्ञानका प्रामाण्य पूर्वज्ञानसे निश्चित किया जायगा, तो वह अन्योन्याश्रय दोष है तथा सम्वादीज्ञान, प्रवृत्तिसामर्थ्य और अर्थक्रियाज्ञान, फलप्राप्ति, आदिसे प्रमाणपयका निश्चय किया जायमा, तो चक्रक भी हो जायगां । अतः जैनोंका
नमें परतः प्रमाणपनका निक्षय करना नहीं बनता है । इस प्रकार शंका होनेपर तो आचार्य उत्तर देते हैं:
तन्नाभ्यासालमाणत्वं निश्चितं खत एव नः । अनभ्यासे तु परत इत्याहुः केचिदंजसा ॥ १२६ ॥ तच स्याद्वादिनामेव खार्थनिश्चयनात् स्थितम् । न तु खनिश्रयोन्मुक्तनिःशेषज्ञानवादिनाम् ॥ १२७ ॥
कि सो शंका तो नहीं करना अथवा कारिकामें तत्र पाठ होनेपर तिस प्रमाणके निश्चय करनेके प्रकरणमें हम जैनोंके यहां ज्ञानमें प्रमाणपना स्वतः ही निश्चित हो रहा माना गया है। अपने घरके परचित जीनेमें अंधेरा होनेपर भी मनुष्य झट संशयरहित चढ, उतर आते हैं । अंधा मनुष्य भी देहरी चौखटको परिचित स्थळमें शीघ्र उलंघ जाता है। अतः अभ्यास दशामें जानवरूपका निर्णय करते समय ही युगपत् उसके प्रमाणपनका भी निर्णय करलिया जाता है।