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तत्यार्थ शोकवातिक
___ नैयायिक अनुनय ( खुशामद ) करते हैं कि लौकिक व्यवहारके प्रति बालक और पण्डित दोनों समान हैं । अतः विचार नहीं करनेवाली बुद्धिसे सहितपने करके ही सब जीवोंकी प्रवृत्ति होना बन जायगा, इस कारण संशयज्ञानसे प्रवृत्ति हो जाना युक्त ही है । अन्यथा यानी ऐसा न मानकर दूसरे प्रकारसे मानोगे तो जैनोंके मतानुसार नहीं विचार करनेवाले अज्ञजनोंकी प्रवृत्ति होनेके अभावका प्रसंग होगा, आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार तो नैयायिकोंको नहीं कहना चाहिये । क्योंकि उन सब जीवोंकी कहीं कहीं कभी कभी विचारयुक्त बुद्धिसहितपने करके भी प्रवृत्ति हो जानेका कोई विरोध नहीं है । घास खोदनेवाला भी विचार कर इष्टकार्यमें प्रवृत्ति करता है । विचार कर कार्य करनेवाले संझीजीवोंके प्रामाण्यमस्त ज्ञानसे प्रवृत्ति होना पाया जाता है । अज्ञजीवोंका प्रमाणपनकी परीक्षामें कोई अधिकार नहीं है।
प्रेक्षावता पुनझेंया कदाचित्कस्यचित्कचित् ।
अप्रेक्षकारिताप्येवमन्यत्राशेषवेदिनः ॥ १२५ ॥
जीवों से किसी जीवका प्रेक्षावान्पना किसी विषयमें किसी भी समय किसी कारणसे हो जाता समझ लेना चाहिये । और फिर इसी प्रकार किसी जीवके कहीं किसी समय विचारे विना कार्य करनेवाली बुद्धिसे सहितपना भी अंतरंग बहिरंग कारणोंसे बन जाता है । सम्पूर्ण पदार्थोको युगपत् जाननेवाले सर्वज्ञ भगवान्के मनःपूर्वक विचार करना नहीं माना गया है । वे तो हथेलीपर रक्खे हुये आमलेके समान तीन काल और तीनों लोक तथा अलोकके पदार्योका युगपत् प्रत्यक्ष कर रहे हैं । अतः सर्वज्ञके अतिरिक्त अन्य जीवोंके प्रेक्षासहितपना और प्रेक्षारहित होकर कार्य करनापन स्वकीय कारणोंसे बन जाता है।
प्रेक्षावरणक्षयोपशमविशेषस्य सर्वत्र सर्वदा सर्वेषामसंभवात कस्यचिदेव कचित्कदाचिच्च प्रेक्षावत्तेतरयोः सिदिरन्यत्र प्रक्षीणाशेषावरणादशेषज्ञादिति निश्चितप्रामाण्याप्रमाणात्प्रेक्षावतः प्रवृत्तिः कदाचिदन्यदा तस्यैवापेक्षावतः यतः संशयादेरपीति न सर्वदा लोकव्यवहार प्रति बालपंडितसरौ।।
हित अहित विचार करनारूप विशिष्ट मतिज्ञानको आवरण करनेवाले कर्मके विशेष क्षयोपशमका सभी विषयोंमें सब जीवोंके सदा नहीं सम्भव है। अतः किसी ही जीवके किसी किसी विषयमें कभी कभी प्रेक्षासहितपना और प्रेक्षारहितपनेकी सिद्धि हो जाती है। भविष्यमें नहीं बंधने
और वर्तमानमें किंचित् भी सत्तामें नहीं रहनेकी प्रकर्षतासे क्षीण हो गये हैं, सम्पूर्ण ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म जिसके, ऐसे सर्वज्ञके अतिरिक्त दूसरे संसारी जीवोंमें प्रेक्षा और अप्रेक्षा व्यवस्थित हो रही है । इस प्रकार प्रमाणपनका निश्चय रखनेवाले प्रमाणसे प्रेक्षावान् पुरुषकी प्रवृत्ति होना