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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
होना माना जावेगा, तो फिर हम पूछेगे कि वह प्रसिद्ध व्यवहार कौन है ? बताओ । यदि बुद्धके शास्त्रों द्वारा दिखलाया गया व्यवहार प्रसिद्ध कहा जायगा, तब तो कपिल, कणाद, गौतम, बृहस्पति, आदिके शास्त्रों द्वारा दिखलाया गया व्यवहार किस कारणसे नहीं प्रसिद्ध माना जाय ? उत्तर दो। यदि उन कपिल आदिकोंके शास्त्रद्वारा प्रदर्शित किये गये व्यवहारमें व्यवहारी जीवोंका अनुकूल वर्तना नहीं है, इस कारण वह व्यवहार प्रसिद्ध नहीं है, ऐसा कहोगे तो जिस ही कारणसे व्यवहारी मनुष्योंका सुगसशास्त्रोंमें कहा गया व्यवहार प्रसिद्धस्वरूप होकर व्यवस्थित हो रहा है, उसीका अतिक्रमण हो जाओ । और वहां तो मोहकी निवृत्ति पहिलेसे ही सिद्ध है। ऐसी दशामें उसके लिये बनाये गये उन शास्त्रोंकरके क्या लाभ हुआ ? बताओ । यदि शास्त्रसे उस मोहकी निवृत्ति करना नहीं इष्ट करोगे तब तो तुम्हारे यहां शास्त्रोंका बनाना व्याघातयुक्त क्यों न हो जावेगा ? अर्थात्-शास्त्रोंको बौद्ध प्रमाण मानते नहीं, मोहकी निवृत्ति भी उनसे नहीं हो पाती है। ऐसी दशामें शास्त्रोंका बनाना व्यर्थ है। प्राचीन गुरुओं द्वारा शास्त्र बनाये गये माने जाते हैं । यों शास्त्रोंको मानते हुये तदनुसार प्रमेयको नहीं माननेपर व्याघात दोष है।
'युक्त्या यन्न घटामेति दृष्ट्वापि श्रद्दधेन तत् ।
इति ब्रुवन प्रमाणत्वं युक्त्या श्रद्धातुमर्हति ॥ ६४ ॥
" युक्त्यापन घटामुपैति तदहं दृष्ट्वाऽपि न श्रद्दधे " जो कोई पदार्थ युक्ति ( हेतुवाद ) से घटनाको प्राप्त नहीं होता है, उसको देखकर भी मैं श्रद्धान नहीं करता हूं। हाथीको देखकर भी चीत्कार शण्डा दण्ड और मोटे पांवोंसे उसका अनुमान करके गजका अध्यवसाय किया जाता , है। इस प्रकार कह रहा बौद्ध प्रमाणपनेको भी युक्तिसे ही श्रद्धान करनेके लिये योग्य होगा अर्थात्-प्रमाणपना भी केवल व्यवहारसे ही न माने, किन्तु समीचीन युक्तियोंसे प्रमाणपनकी व्यवस्था करे। .
न केवलं व्यवहारी दृष्टं दृष्टमपि तत्त्वं युक्त्या श्रद्धातव्यं । सा च युक्तिः शास्त्रेण व्युत्पाधते ततो शास्त्रप्रणीतियाहतेति ब्रुवन् कस्यचित्रमाणत्वं युक्त्यैव श्रद्धातुमर्हति ।
___ वह व्यवहार करनेवाला लौकिक जन देखे हुये पदार्थका केवल यों ही श्रद्धान न कर लेवे किन्तु उसको देखे हुये तत्त्वका भी युक्तिसे घटित होनेपर श्रद्धान करना चाहिये । और वह युक्ति शास्त्र करके समझी जाती है । तिस कारण शास्त्रोंका बनाना व्याघातयुक्त नहीं है । इस प्रकार कहरहा बौद्ध किसीके प्रमाणपनका भी युक्तियों करके ही श्रद्धान करनेके लिये योग्य होता है। युक्ति विना अर्थात् -सबसे बढिया सभालने योग्य ( जोखम ) प्रमाणका श्रद्धान तो युक्तिसे निर्णीत -होनेपर ही करना चाहिये । अन्यथा बुद्धपनेके दोषका प्रसंग होगा।
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