SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 580
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्वार्थचिन्तामणिः ५६७ अविद्याका विलास ही नहीं है, जैसा कि बौद्धोंने कहा था। इस प्रकार साधनज्ञानसे जानने योग्य साधनका श्री उमास्वामी महाराजने सूत्रमें बहुत अच्छा निरूपण किया है । अर्थात् बौद्ध, अद्वैतवादी आदि सभीको साधन जानने योग्य है । तभी वस्तुके तलको स्पर्श करनेवाला ज्ञान हो सकेगा । विना साधनको जाने ऊपरी टटोलसे ठोसज्ञान नहीं होने पाता है । आधाराधेयभावस्य पदार्थानामयोगतः । तत्त्वतो विद्यते नाधिकरणं किञ्चिदित्यसत् ॥ १७ ॥ स्फुटं द्रव्यगुणादीनामाधाराधेयतागतेः । प्रसिद्धिबाधितत्वेन तदभावस्य सर्वथा ॥ १८ ॥ अब अधिगमके चौथे उपाय अधिकरणका विचार चलाते हैं। तहां प्रथम निश्चयवादीक समान बौद्धों का कहना है कि भूतल, घट, चौकी, पुस्तक, आत्मा, ज्ञान, आदि पदार्थोंके आधार आधेय भावका वस्तुतः अयोग है । अतः जगत् में वास्तविकरूपसे कोई किसीका अधिकरण नहीं है । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार बौद्धोंका कथन झूठा है। क्योंकि द्रव्यगुण, जातिव्यक्ति, आम्रवृक्ष, आदि पदार्थोंका स्पष्टरूपसे आधार आधेयभाव जाना जा रहा है । अतः उस अधिकरणका अभाव सभी प्रकारकी लोकप्रसिद्ध प्रतीतियोंसे बाधित है। यहां दो अनुमान बना लेना । तब पहिले अनुमानका हेतु सत्प्रतिपक्ष या बाधितहेत्वाभास हो जायगा । न हि द्रव्यमप्रसिद्धं गुणादयो वा प्रत्यभिज्ञानादिप्रत्ययेनाबाधितेन तन्निरूपणात् । नाप्याधाराधेयता द्रव्यगुणादीनामप्रसिद्धा यतः सर्वथाधिकरणमसदिति पक्षः प्रसिद्धि - बाधितो न स्यात् । हेतुश्चासिद्धः पदार्थानामाधाराधेयभावस्य विचार्यमाणस्यायोगादिति । स्थाल्यां दधि पटे रूपमिति तत्प्रत्ययस्य निर्बाधस्य तत्साधनत्वात् कार्यकारणभावविशेषस्य साधकोऽयं प्रत्यय इति चेत् स एवाधाराधेयभावोऽस्तु । सांवृतोऽसाविति चेत् न कार्यकारणभावस्य तात्विकस्य साधितत्वात् तद्विशेषस्य ताविकत्वसिद्धेः । वैशेषिक के यहां द्रव्य पदार्थ माना ही है, किन्तु जैनोंके यहां भी द्रव्यपदार्थ अप्रसिद्ध नहीं है अथवा गुण, क्रिया, पर्याय आदिक भी अप्रसिद्ध नहीं हैं । प्रत्यभिज्ञान, अनुमान, आदि बाधा रहित प्रमाणोंसे उन द्रव्य, गुण, आदिकी सिद्धिका निरूपण किया है तथा द्रव्य, गुण, आदिकोंका आधाराधेयभाव भी अप्रसिद्ध नहीं है। जिससे कि सभी प्रकारोंसे अधिकरण असत् है, यह बौद्धोंकी प्रतिज्ञा करना लोकप्रसिद्धियोंसे बाधित न होता और पदार्थोंका आधार आधेयभाव विचारा गया होकर नहीं बन पाता है, यह बौद्धोंका हेतु असिद्ध न होता । भावार्थ-प्रतीतियोंसे आधार आधेयभाव जब सिद्ध हो चुका है, तो बौद्धोंका पक्षप्रमाण बाधित
SR No.090496
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1951
Total Pages674
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy