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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
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सिद्ध करनेके लिए दूसरे उपाय हैं नहीं । भावार्थ-शब्दके द्वारा ही वस्तुके स्वरूप सिद्ध किये जा सकते हैं । किन्तु बौद्धोंने शद्वको वस्तुस्पर्शी माना नहीं है। अब क्या उपाय शेष रहा ? प्रत्यक्ष तो स्वभावोंका निर्णय नहीं कर सकता है। अनुमान केवल समारोपोंको दूर करता रहता है । " पोतकाक " न्यायसे शद्बकी ही शरण लेना आवश्यक है।
तदकिञ्चिद्रूपं चेत् कथं वस्तु व्याघात सकृत्कल्पितरूपाभावादकिंचिद्रूपं नानुभूयमानरूपाभावादिति चेत् तवाप्यसाधारणं तत्किमिदानीमनुभूयमानरूपं वस्तु स्थितं ? तथा वा स्थाने तैमिरिकानुभूयमानमपीन्दुद्वयं वस्तु स्यात् ।
___ उस वस्तुका स्वरूप कुछ भी नहीं है, यदि ऐसा कहोगे तो बताओ ! वह वस्तु कैसे बनेगी ? कुछ भी स्वरूप नहीं है और वह वस्तु है, ऐसा एकबार कहनेमें व्याघातदोष है । अर्थात् जो कुछ भी नहीं हैं, वह वस्तु नहीं हो सकती है और जो वस्तु है, वह " कुछ नहीं" नहीं हो सकती है । इसपर यदि बौद्ध यों कहें कि ( एक बार ही ) कल्पना कर लिये गये अनेक स्वरूप तो वस्तुमें नहीं हैं । इस कारण वस्तु अकिञ्चित् स्वरूप है यानी व्यवहारिक शद्बोंसे बोले गये धर्मो करके उसका कुछ भी स्वरूप नहीं है। हां! प्रत्यक्षज्ञानरूप अनुभवमें आरहे स्वरूपोंके अभावसे वस्तु अकिञ्चितूरूप होय ऐसा नहीं है। अर्थात वस्तके प्रत्यक्ष करने योग्य स्वरूप तो वास्तविक हैं । आचार्य कहते हैं कि ऐसा करनेपर तो हम पूछेगे कि तुम्हारे यहां भी माना गया वस्तुका वह असाधारणस्वरूप क्या इस समय अनुभवमें आरहा होकर स्थित हो रहा है ? यदि वस्तुके तिस प्रकार असाधारणरूपसे अनुभव किये गये स्वरूपकी श्रद्धा करोगे, तब तो तमारा रोगवाले पुरुषके द्वारा अनुभूत हो रहे दो चन्द्रमा भी वस्तुभूत हो जायेंगे । भावार्थ--एक ही समय दो चन्द्रमा देखनेमें अभी तक नहीं आये हैं, किन्तु आधी मिची हुयी आंखमें अंगुली गाढकर देखनेपर या नेत्र-विकार हो जानेपर दो चन्द्रमाका विशेषरूपसे नवीन ज्ञान होता है । ऐसे असाधारण अनुभवके विषय दो चन्द्रमा वस्तुभूत हो जायेंगे। अथवा धत्तुरको खानेवाले या पीलिया रोग वाले पुरुष द्वारा असाधारणरूपसे देखा गया सब सोना भी वास्तविक हो जायगा. जो कि इष्ट नहीं है।
सुनिर्णीतासम्भवद्धाधकप्रमाणं वस्तु नान्यदिति चेत् तर्हि यथा प्रत्यक्षतोऽनुभूयमानं तादृशं वस्तु तद्वल्लिगशद्वादिविकल्पोपदर्शितमपि देशकालनरान्तराबाधितरूपत्वे सति किं नाभ्युपेयते विशेषाभावात् । ततो जात्यन्तरमेव सर्वथैकान्तकल्पनातीतं वस्तुत्वमित्युक्तेः स्यादवक्तव्यमिति सूक्तम् । - यदि आप यों कहो कि जिस पदार्थके असम्भव होनेको बाधा देनेवाला प्रमाण. भले प्रकार निर्णीत हो चुका है। अथवा जिस पदार्थके सद्भावकी सिद्धि में बाधक होरहे प्रमाणका असंभव