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तत्वार्थ लोकवार्तिके
दूसरे वादियोंका यह एकान्त है कि शद्वका अर्थ गौण ही है । मुख्य अर्थ कुछ भी नहीं है । शद्ब वस्तुभूत अर्थको नहीं छूता है । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार बौद्धोंका कहना भी अयुक्त है। क्योंकि मुख्य न होनेपर वह गौणपना बन नहीं सकता है। मुख्य सिंहके होनेपर तो वीर पुरुषमें सिंहपना गौणरूपसे कल्पित कर लिया जाता है । संपूर्ण शद्वोंके कल्पनासे आरोपित किये गये भी अर्थको वाच्यार्थ कथन कर रहे बौद्धों करके यह तो अवश्य मान लेना चाहिये कि गौसे भिन्न महिष आदि अगौ करके पृथग्भूत हो रहा गो स्वलक्षणरूपी अर्थ जो कि परमार्थ रूपसे बुद्धि में प्रतिभासित हो रहा है। वह तो गोशद्वका मुख्य अर्थ है और उससे भिन्न बोझा ढोनेवाला मनुष्य या मूर्ख छात्र आदिक गौण अर्थ हैं । और तिस प्रकार मानलेनेपर शद्वके द्वारा लोकहार और शास्त्रव्यवहार होनेको कहनेवाले सभी वादियों करके वाक्यके गौण तथा मुख्य दोनों अर्थ इष्ट हो जाते हैं । इस कारण किसीको भी गौण या मुख्य अर्थोका अपह्नव करना समुचित नहीं है । हां ! गूंगे, बहिरे, या छोटा बालक, उन्मत्त, आदि जो वचनको कहने सुननेके अधिकारी नहीं हैं, उनकी बात निराली है । शद्वके द्वारा व्यवहार करनेमें जो अधिकार प्राप्त नहीं हैं, ऐसे तुच्छ जीवों के अतिरिक्त सभी प्रामाणिक वादियोंको शद्वके मुख्य गौण दोनों अर्थ अभीष्ट करने पडते हैं ।
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ननु यत्र शब्दा दस्खलत्मत्ययः स मुख्यः शद्धार्थः श्रूयमाण इव गम्यमानेऽपि । यत्र तु स्खलत्प्रत्ययः स गौणोऽस्तु ततो न श्रूयमाणत्वं मुख्यत्वेन व्याप्तं गौणत्वेन वा गम्यमानत्वं येन शद्बोपात्त एव धर्मो मुख्यः स्यादपरस्तु गौण इति चेन्न, अस्खलत्प्रत्ययस्यापि मुख्यत्वेन व्याप्यभावात् प्रकरणादिसिद्धस्यास्खलत्प्रत्ययस्यापि गौणत्वसिद्धेः प्रतिपत्रा बुभुत्सितं वस्तु यदा मुख्योर्थस्तदा तं प्रति प्रयुज्यमानेन शद्वेनोपात्तौ धर्मः प्रधानभावमनुभवतीति शेषानन्तधर्मेषु गुणभावसिद्धेः ।
यहां शंका है कि पूर्वमें आप जैनोंने कहा था कि जो धर्म शद्वके द्वारा कहा जाकर सुना जाय, वह मुख्य है और अभेद रूपसे जान लिये गये शेषधर्म गौण अर्थ हैं । इसपर हमको यह कहना है कि जिस अर्थ में शद्वसे चलायमान रहित ज्ञान होय यानी शद्वको सुनकर जिस अर्थका संशय आदि रहित प्रामाणिक ज्ञान होय वह अर्थ शद्वका मुख्य वाच्यार्थ है । शद्वके द्वारा सुने गये अर्थके समान शके द्वारा अभेदवृत्तिसे जान लिये गये अनुक्त गम्यमान अर्थमें भी यदि समीचीन ज्ञान हो रहा है तो वह भी मुख्य अर्थ ही माना जाय । हां ! शद्बको सुनकर जिस अर्थ में चलायमान ज्ञान हो । अर्थात् कभी किसी अर्थका कभी किसी अन्य अर्थका ज्ञान होय तो वह अर्थ rant गौण अर्थ मान लिया जाओ । तिस कारण आप जैनोंके कथनानुसार शद्वसे सुना गयापन मुख्यपने के साथ व्याप्ति नहीं रखता है । और तैसे ही अभेद सम्बन्धसे जान लियापन या प्रकरणआदि द्वारा अर्थापत्तिसे आक्षिप्यमाणपन भी गौण अर्थपनेके साथ अविनाभाव नहीं रखता है, जिससे