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तत्वार्थचिन्तामणिः
किन्तु फिर सम्पूर्ण शब्द अपने अपने अर्थको भावपनेसे न कहें, ऐसे अयुक्त नियमोंके बनाने में हम कोई सार नहीं समझते हैं । यदि उस अन्यव्यावृत्ति शद्वको भी उस अन्य व्यावृत्ति से भिन्नकी निवृत्ति रूप अर्थका प्रतिपादक मानोगे तो अनवस्थादोष होगा । क्योंकि उस व्यावृत्ति भिन्नव्यावृत्ति शद्वसे भी चार निषेधवाली और चारसे छह आदि व्यावृत्तियां समझी जायंगी । कहीं भी समधाराका अन्त न मिलेगा । दूसरी बात यह है कि जो कुछ शद्वके द्वारा तुम समझाना चाहते हो, उस स्वार्थकी विधिका प्रतिपादन करना कैसे भी सिद्ध न होगा । इस बातको बहुलता करके हम पहिले कह चुके हैं । इस प्रकार बौद्धोंके अन्यापोहका खण्डन हो जाता है ।
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farmy एव शद्बार्थो नान्यनिवृत्तिरूपो यतस्तत्प्रतिपत्तयेऽवधारणमित्यपरे, तेषामपि स्ववचनविरोधः। सुरा न पातव्येत्यादिनञ्स हितशद्वप्रयोगात् प्रतिषेधप्रतिपत्तेः स्वयमिष्टेः । शका अर्थ भाव पदार्थकी विधि होना ही है, अन्य निवृत्ति स्वरूप अर्थ नहीं है जिससे कि उस अन्य निवृत्तिके लिये एवकार डालना आवश्यक होय, इस प्रकार कोई तीसरे विधायक शद्व वादी कह रहे हैं । उनके यहां भी अपने वचनोंसे ही विरोध आता है । शद्व विधायक ही है । निषेधक नहीं है, यह कथन ही विधि और निषेध दोनोंको कह रहा है। " सुरा न पातव्या न मांसं भक्षयेत् ” इत्यादिक नञ् अव्ययसे सहित शद्वोंके प्रयोगसे मध नहीं पीना चाहिये । मांस नहीं खाना चाहिये ऐसे प्रतिषेधका ज्ञान होना स्वयं उन्होंने इष्ट किया है । व्रतके दिन मद्य, मांसके खानेका निषेध करनेसे अन्नके खानेकी विधि तो नहीं की गयी है । अतः शद्वका विधिरूप ही अर्थ है यह एकान्त सिद्ध न हो सका ।
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केषाञ्चित्प्रतिषेध एव द्वैराश्येन स्थितत्वाद्बोधवत् इति तु येषां मतं तेषां घटमानयेत्यादिविधायकशद्वप्रयोगे घटमेव नाघटमानयैव मा नैषीरित्यन्यव्यावृत्तेरप्रतिपत्तेस्तद्वैयर्थ्यप्रसंगोनुक्तसमत्वात् । सुरा न पातव्येत्यादिप्रतिषेधकशद्वप्रयोगे च सुरातोन्यस्योदकादेः पानविधेरप्रतीतेः सुराशद्वप्रयोगस्यानर्थकत्वापत्तिः, सुरापानस्यैव ततः प्रतिषेधात् पयः पानादेरप्रतिषेधात् अविधानाश्च न दोष इति । किमिदानीं शब्दस्य कचित्प्रतिषेधनं तदन्यचौदासीन्यञ्च विषयः स्यात् तथा कचिद्विधानम् । तदन्यत्र विधानं न प्रतिषेधनं चेति नैवं व्याघातादिति चेत्, तत एवान्याप्रतिषेधे स्वार्थस्य विधानं तदविधाने चान्यमतिषेधो माभूत् ।
जिन वादियोंका यह मत है कि किन्हीं शद्वोंका तो अर्थ निषेध करना ही है और कितने rain of infoध करना ही है । इस प्रकार सम्पूर्ण शब्द दो बडी राशियों में विभक्त होकर प्रतिष्ठित हैं । जैसे कि सम्पूर्ण ज्ञान विधायक और निषेधक ऐसे दो मोटे भेदोंमें विभक्त हैं, इस प्रकार जिनका यह मत है, उनके यहां तो घटको लाओ इत्यादिक विधान करनेवाले
प्रयोग