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तत्वार्थकोकवार्तिके
निवृत्ति करनेके लिए उनको दूसरे एव, हि, आदि द्योतकोंकी अपेक्षा करना युक्तिसिद्ध है । निपात द्योतक ही होय, ऐसा एकान्त नहीं है । कहीं उनको वाचक भी इष्ट किया गया है, यानी नियम, समुच्चय, अथवा, आदि, अर्थोको स्वतन्त्रतासे एव, च और वा शब्द कह रहे हैं।
और निपात द्योतक होते हैं । इस प्रकार शब्दसिद्धान्त करनेपर यहां च शबसे वाचक भी होते हैं। ऐसा व्याख्यान किया गया है। प्रकृति, प्रत्यय, विकरण या निपतन आदि द्वारा स्वयं गांठके अर्थको संकेत द्वारा प्रतिपादन करनेवाले घट, पट, अस्ति आदि शब्द वाचक माने गये हैं। जाति शब्द, गुणशद्ध इत्यादिक सर्व वाचक शब्द हैं । जो कि स्वातन्त्रतासे अपने ऊपर लदे हुए अर्थका स्पष्ट परिभाषण करते हैं तथा स्वयं गांठका कुछ अर्थ न रखते हुए भी केवल अपनी विद्यमानता होनेपर उन वाचक शब्दोंसे ही अधिक अर्थको निकालनेमें जो सहायक हो जाते हैं । वे द्योतक शब्द हैं। जैसे प्रदीपने घटका कोई शरीर नहीं बना दिया है किन्तु अन्धकारमें रखे हुए घट अर्थका वह द्योतक होजाता है । इस प्रकार सभी शब्द निपातोंके समान अपने अर्थको द्योतकरूपसे ही समझाते हुए सदातन कालसे धाराप्रवाहरूप चले आरहे हैं, यह तो नहीं समझ बैठना । जिससे कि स्वार्थके नियम करनेमें वे द्योतक होते सन्ते दूसरे द्योतक शद्बोंकी अपेक्षा न करें। अर्थात् निपात भले ही द्योतक हैं किन्तु सभी अस्तित्व, घट आदि शब्द तो स्वार्थके द्योतक नहीं हैं । वे तो वाचक हैं। तब तो अन्य व्यावृत्ति या समुच्चय आदि अर्थको निकालनेके लिये एवकार चकार आदिकी आवश्यकता पड जाती है । तिस कारण सिद्ध हुआ कि वाचक अस्ति आदि शबोंके प्रयोग करनेपर उनसे भिन्न अनिष्ट अर्थकी निवृत्तिके लिये एवकारका प्रयोग करना बहुत अच्छा ही है ।
सर्वशद्वानामन्यव्यावृत्तिवाचकत्वात् तत एव तत्पतिपत्तेस्तदर्थमवधारणमयुक्तमित्यन्ये । तेषां विधिरूपतयार्थप्रतिपत्तिः शद्वात् प्रसिद्धा विरुध्यते कथं चान्यव्यावृत्तिखरूपं विधिरूपतयान्यव्यावृत्तिशद्धः प्रतिपादयेन पुनः सर्वे शद्धाः स्वार्थमिति बुध्यामहे । तस्यापि तदन्यव्यावृत्तिप्रतिपादनेऽनवस्थानं स्वार्थविधिप्रतिपादिता सिद्धेर्वेत्युक्तप्रायम् ।
सम्पूर्ण शब्द अपनी गांठसे ही अन्य व्यावृत्तिके वाचक हैं । तिस ही कारण तो हीको लगाये विना भी चाहे जिस शद्बके द्वारा उस अन्य निषेधकी प्रतीति हो जाती है। अतः उस अनिष्ट अर्थकी निवृत्तिके लिये एवकार लगाना युक्त नहीं हैं, इस प्रकार कोई दूसरे वादी कह रहे हैं । उनके यहां शद्बके द्वारा भाव अर्थकी विधानरूपसे प्रतिपत्ति होना जो आबाल जन प्रसिद्ध हो रही है, वह विरुद्ध हो जायगी । अर्थात् सभी शद्बोंको सुनकर निवृत्ति तो हो जायगी, किन्तु अर्थमें प्रवृत्ति न हो सकेगी । भला यह तो विचारो कि यों अन्य व्यावृत्ति यह शब्द अपने ऊपर दूसरी न्यारी अन्य व्यावृत्तिका बोझ न बढाकर अनवस्था दोषको हटाता हुआ केवल अपने शरीरके अर्थ अन्यकी व्यावृत्तिको ही कैसे कहेगा ! हां! कहनेपर तो मानना पडता है कि यही तो विधि रूपसे अर्थका प्रतिपादन है अन्य व्यावृत्ति शब्द तो अपने वाध्य भाव अर्थ अन्य व्यावृत्तिको कहे,