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कन्तामणिः
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कराओ आदि, ऐसा कहनेपर गौण पदार्थमें ही अच्छा ज्ञान होना सिद्ध हैं । वहां जो गौओंको पालता है ऐसे भावरूप गोपालका सम्यग्ज्ञान होकर लाना नहीं है, अथवा जो कट यानी चटाईपर उत्पन्न हुआ है ऐसे मुख्य कटेज़ व्यक्तिमें ज्ञान नहीं होता है। तब तो क्या होता है ? सो सुनो ! जिस पुरुषका गोपाल या कटज यह नामकरण कर दिया है, उस गौण व्यक्तिमें (की) ही प्रतीति होती है । बालकके मचल जानेपर मिट्टी या काठके बने हुए कल्पित ( नकली ) सांप और सिंहको लाया जाता है । मुख्य ( असली ) को नहीं । यदि कोई यों कहें कि गोपाल, कटज, सर्प आदिका प्रकरण होनेपर तो कृत्रिम ( नकली बनाया गया ) होनेसे गौण पदार्थमें ही लाने ले जानेका समीचीन ज्ञान होता है । मुख्यमें नहीं। क्योंकि वह मुख्य तो अकृत्रिम है । लौकिक पुरुष कृत्रिम ( गढ लिये गये ) और अक्कुत्रिम ( बनावटी नहीं ) इन दोनोंके प्रसंग प्राप्त होनेपर कृत्रिम में सुलभता से ज्ञान कर लेते हैं, ऐसा वचन है । पहिली परिभाषाकी अपवादरूप यह परिभाषा है । अतः जहां मुख्यका ग्रहण होगा, वहां मुख्यका ही और जहां गौणका प्रकरण है, वहां गौण पदार्थका ही प्रज्ञापन होगा। दोनोंका नहीं हो सकता है । इसपर आचार्य कहते हैं कि यह भी एकान्तरूपसे नियम नहीं है। यानी गौण और मुख्यमेंसे किसी एकका ही ग्रहण होय, अथवा कृत्रिम और अकृत्रि - ममें से कृत्रिमका ही ज्ञान होय, यह नियम सब देश, सब काल और सर्व व्यक्तियोंके लिये उपयोगी नहीं है। क्योंकि धूलिसे लिथडे हुए पगवाले गवांर मनुष्यके वहां ही दोनों प्रकार के ज्ञान होते हुए देखे जा रहे हैं, वह पामर प्रकरणका जाननेवाला नहीं होनेके कारण विचारा मुख्य और गौण दोनोंकी प्रतीति कर लेता है । वह विचारता है कि अधिकारीने मुझे गोपाल और कटेज लानेकी आज्ञा दी हैं । जो मनुष्य गौओंको पालता है अथवा जो चटाईपर उत्पन्न हुआ है, उस मुख्य पदार्थको मैं लाऊं ? अथवा क्या जिस पुरुषकी यह गोपाल या कटज संज्ञा है उस गौण पदार्थको ले जाकर कृतार्थ हो सकता हूं ? इस प्रकार मुख्य और गौण दोनों पदार्थोंको जानकर उसके हृदयमें किसी एकको ले जानेके लिये विकल्प उठ रहा है । इसपर शंकाकार यदि यों कहे कि प्रकरणको जाननेवाले पुरुषका कृत्रिम पदार्थमें ही सुलभतासे ज्ञान होता है। मुख्यमें नहीं, सो यह पक्ष तो नहीं लेना । क्योंकि प्रकरणको जाननेवाले उस पुरुषका मुख्य अकृत्रिममें भी तैसा प्रकरण होनेसे समीचीन ज्ञान होना बन जाता है। प्रतिदिन सहस्रोंवार यह व्यवहार देखा जाता है । अतः सिद्ध हुआ कि प्रकरणके अनुसार गौणका या मुख्यका अथवा कचित् दोनोंका ज्ञान होना निक्षेपका विधि विधान करनेसे ही सम्भव है। अन्य उपाय नहीं है ।
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ननु च जीवशद्वादिभ्यो भावजीवादिष्वेव संप्रत्ययस्तेषामर्थक्रियाकारित्वादिति चेत् न, नामादीनामपि स्वार्थक्रियाकारित्वसिद्धेः । भावार्थक्रियायास्तैरकरणादनर्थक्रियाकारित्वं तेषामिति चेत्, नामाद्यर्थक्रियायास्तर्हि भवेमाकरणासस्यानर्थक्रियाकारित्वमस्तु ।