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तत्वार्थचिन्तामणिः
तिस ही प्रकार परवृद्ध ( प्राचीन वृद्ध ) और अपर ( आधुनिक ) वृद्धोंकी आम्नाय अनुसार प्रसिद्धिका टूटना नहीं हुआ है तथा इसका कोई बाधक प्रमाण भी नहीं है । अर्थात् भलें ही नामनिक्षेप सुमेरुपर्वत, भरतक्षेत्र, नन्दीश्वरं द्वीप, आदि में अनादिसे प्रवृत्त है और कहीं वृद्ध प्राचीन परिपाटीसे मथुरा, पटना, भात, घडी, आदि नाम चले आ रहे हैं, कतिपय नाम अल्प समय के लिये ही धर लिये जाते हैं, किन्तु इसमें अनादि कालके संकेत करने की आवश्यकता नहीं है । यहां तक सूत्रके आदिमें कही गयीं दो वार्त्तिकोंके प्रकरणका उपसंहार कर दिया गया है ।
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का पुनरियं स्थापनेत्याह; ----
फिर दूसरी यह स्थापना क्या है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्रीविद्यानन्द आचार्य महाराज उत्तर कहते हैं; -
वस्तुनः कृतसंज्ञस्य प्रतिष्ठा स्थापना मता । सद्भावेतरभेदेन द्विधा तत्त्वाधिरोपतः ॥ ५४ ॥
कर लिया गया है नाम निक्षेप जिसका ऐसी वस्तुकी उन वास्तविक धर्मोके अध्यारोपसे यह वही है ऐसी प्रतिष्ठा करना स्थापना निक्षेप माना गया है । वह सद्भाव स्थापना और इतर यानी असद्भाव स्थापनाके भेदसे दो प्रकार है ।
स्थाप्यत इति स्थापना प्रतिकृतिः सा चाहितनामकर्मकस्येन्द्रादेवस्तवस्य तत्त्वाध्यारोपात् प्रतिष्ठा सोऽयमित्यभिसम्बन्धेनान्यस्य व्यवस्थापना स्थापनामात्रं स्थापनेति वचनात् । तत्राध्यारोप्यमाणेन भावेन्द्रादिना समाना प्रतिमा सद्भावस्थापना मुख्यदर्शिनः स्वयं तस्यास्तद्बुद्धिसम्भवात् । कथञ्चित् सादृश्यसद्भावात् । मुख्याकारशून्या वस्तुमात्रा पुनरसद्धावस्थापना परोपदेशादेव तत्र सोऽयमिति संप्रत्ययात् ।
यन्त स्था धातुसे युट् और टाप् प्रत्यय करके स्थापना शब्द बनता है । यों जो थापी जावे, सो स्थापना है, इसका अर्थ प्रतिकृति अर्थात् प्रतिबिम्ब मूर्ति ( तस्वीर ) है । वह स्थापना नाम धर लिये गये और वास्तविक इन्द्रराजा, जिनेन्द्र, जम्बूद्वीप, भारतवर्ष, आदिके तत्पने करके किये गये अध्यारोपसे यह वही है ऐसी प्रतिष्ठा है । इस स्थाप्यस्थापक सम्बन्धसे अन्यकी दूसरे पदार्थ में व्यवस्था कर देना हो जाता है, क्योंकि केवल स्थापना कर देना ही स्थापना है, ऐसा पूर्व ऋषियोंने स्थापनाको भावप्रधान कहा है । तिस स्थापनाके प्रकरण में वास्तविक पर्यायोंसे परिणमे हुए और स्वर्गौमें स्थितभावनिक्षेपसे कहे गये सौधर्म, ईशान इन्द्र आदि हैं, तिनके समान बनी हुयी प्रतिमामें आरोपे हुए उन इन्द्र आदिकी स्थापना करना सद्भाव स्थापना है। किसी अपेक्षासे विद्यमान है, तभी तो मुख्य पदार्थको देखनेवाले जीवकी तिस प्रतिमाके
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इन्द्र आदिका सादृश्य यहां अनुसार सादृश्यसे स्वयं यह
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