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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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यदि जातिको पदका अर्थ माननेवाले यों कहें कि इन्द्रियोंके द्वारा जाने गये विषयोंका स्पष्ट ( विशद ) रूपसे प्रकाश होता है, किन्तु शब्दके द्वारा जाने गये वाच्यार्थका तो स्पष्ट अवभास नहीं होता है, इस कारण इन्द्रियगोचर अर्थोसे निराले कोई कोई अस्पष्ट विषय शद्वके वाच्य अर्थ माने जाते हैं । इस पर हम जैन कहते हैं कि तब तो अस्पष्ट प्रतिभास होनेके कारण हेतुजन्य ज्ञानका विषय अनुमेय भी शद्वजन्य ज्ञानका गोचर प्राप्त होगा । जो कि आपको इष्ट नहीं है । अनुमेय और आगमगम्य प्रमेयोंमें महान् अन्तर हैं, दूसरे अन्य प्रकारोंसे अब आप मीमांसक शद्वके वाच्यअर्थकी सिद्धि नहीं कर सकते हैं । व्यवस्था बिगड जायगी ।
शद्वात्प्रतीता जातिर्जात्या वा लक्षिता व्यक्तिः शद्धार्थ एवास्पष्टावभासित्वादित्ययुक्तं, लिंगार्थेन व्यभिचारात् । तस्यापि पक्षीकरणे लिंगार्थयोः स्थित्ययोगात् ।
उक्त वार्तिकका व्याख्यान यह है कि शब्दसे जाति जानी जाती है और जातिसे अन्वयानुपपत्ति या तात्पर्यानुपत्तिके प्रतिसन्धान होनेपर शक्य सम्बन्धरूप लक्षणावृत्तिके द्वारा व्यक्ति जानी जाती है। अतः अविशद प्रकाश करनेवाला होनेके कारण वह व्यक्ति शब्दका विषय ही है, इन्द्रियका गोचर नहीं। ग्रन्थकार समझाते हैं कि इस प्रकार कहना युक्तियोंसे रहित है, क्योंकि अविशद प्रकाशीपन हेतुका धूम आदि लिंगके विषय हो रहे अग्नि आदि अर्थ करके व्याभिचार है । भावार्थजिसका अस्पष्ट प्रकाश है वह शद्वका विषय है ऐसी व्याप्ति बनानेपर लिंगके द्वारा जाने गये अनुमेय अर्थसे व्यभिचार है । अनुमेय अर्थ भी अस्पष्टरूपसे जाना गया है, यों तो वह भी शब्द्वका विषय हो जावेगा। यदि आप उस अनुमेय अर्थको भी पक्षकोटिमें कर लोगे सब तो अनुमानसे और शादबोधसे जाने गये भिन्न भिन्न प्रमेयोंकी स्थिति न हो सकेगी, तथा उपमान, और अर्थापत्तिके विषयोंको भी शब्दका विषयपना प्राप्त हो जावेगा । इस ढंग से प्रमाणोंके भेदोंकी व्यवस्था होना भी कठिन हो जावेगा।
यत्र शद्वात्प्रतीतिः स्यात्सोर्थः शब्दस्य चेन्ननु । व्यक्तेः शद्वार्थता न स्यादेवं लिंगात्प्रतीतितः ॥२०॥
मीमांसक यहां तर्कणापूर्वक कहते हैं कि जिस पदार्थमें शबसे प्रतीति होती है वह उस शब्दका वाच्य अर्थ है। ऐसा कहनेपर हम जैन कहेंगे कि यों तो विशेषव्यक्तिको शब्दकी वाच्यता न हो सकेगी, कारण कि पूर्वोक्त प्रकार आपने हेतुसे व्यक्तिकी प्रतीति की है । अतः अर्थक्रिया करनेमें उपयोगी विशिष्ट पदार्थका ज्ञान तो अनुमानसे हुआ शाद्बोधका विषय कोई विशिष्ट पदार्थ न हो सका यह भारी त्रुटि है । आप मीमांसकों द्वारा मानी गयी शब्दके वाच्य अर्थ जातिकी तो किसी भी जीवको शबसे प्रतीति नहीं होती है ।