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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
भी उन जीव और अजीव दोनोंके अनन्तर आस्रवका निरूपण है । अजीवके पीछे आतत्वको कहने में एकदेश तदात्मक सम्बन्ध घटक है, अथवा आश्रयाश्रयभाव सम्बन्ध है ।
सत्यास्रवे बन्धस्योत्पत्तेस्तदनन्तरं तद्वचनं, आस्रवबन्धप्रतिध्वंस हेतुत्वात् संवरस्य तत्समीपे ग्रहणम् ।
आस्रवके होनेपर बन्धकी उत्पत्ति होती है, अतः आस्रव के अव्यवहित पीछे बन्ध तत्वका प्ररूपण है । यहां कार्यकारणभाव सम्बन्ध है । यद्यपि आस्रव और बन्धका एक समय है, फिर भी आगे पीछे होनापन है । विस्रसोपचयका या आत्माके उसी देशमें पडी हुई कार्मणवर्गणाओंका भी आस्रव होकर ही बन्ध हो पाता है, समान समयमें भी दीप और प्रकाशके समान कार्यकारणभाव चित् मान लिया है । आस्रव और बन्ध इन दोनोंके नाशका कारण होने से उनके समीपमें संवर तत्त्वका ग्रहण किया है । यहां प्रतियोगिकत्व या प्रतिकूलत्व सम्बन्ध योजक है ।
सति संवरे परमनिर्जरोपपत्तेस्तदन्तिके निर्जरावचनं सत्यां निर्जरायां मोक्षस्य घटनात्तदनन्तरमुपादानम् ।
साधारणनिर्जरा भले ही चाहे जब हो जावे अथवा संवरके विना भी हो जावे किन्तु परमनिर्जरा तो संवरके होनेपर ही सिद्ध होती है, इस कारण उस संवरके निकट निर्जराका वचन किया है, यहां अन्यथानुपत्ति दोनों तत्त्वोंका घटकावयव ( संयोजिका ) है । विशिष्ट निर्जराके ही होनेपर मोक्षकी प्राप्ति घटित होती है । अतः उस निर्जराके पीछे मोक्षका ग्रहण किया है, यहां कार्यकारणप्रत्यासत्ति है ।
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मोक्षपरमनिर्जरयोरविशेष इति चेतसि मा कृथाः, परमनिर्जरणस्यायोगकेवलिचरमसमयवर्त्तित्वात्तदनन्तरसमयवर्तित्वाच्च मोक्षस्य । य एवात्मनः कर्मवन्धविनाशस्य काल: स एव केवलत्वारव्यमोक्षोत्पादस्येति चेत् न, तस्यायोगकेवलिचरमसमयत्वविरोधात् पूर्वस्य समयस्यैव तथात्वापत्तेः, तस्यापि मोक्षत्वे तत्पूर्वसमयस्येति सत्ययोगकेवलिचरमसमयो व्यवतिष्ठेत, न च तस्यैव मोक्षत्वे अतीत गुणस्थानत्वं मोक्षस्य युज्यते चतुर्दशगुणस्थानान्तःपातित्वानुषङ्गात् ।
यहां किसी की शंका है कि मोक्ष और परमनिर्जरामें कोई अन्तर नहीं है, सम्पूर्ण कमका झड जाना परमनिर्जरा है और मोक्ष भी सम्पूर्णकर्मीका ध्वंस होजानारूप है । अतः इन दोनों तत्त्वों में कोई भिन्नता नहीं दीखती है । ग्रन्थकार समझाते हैं कि इस प्रकारकी शंकाको चित्तमें नहीं करना, क्योंकि अयोगकेवली नामक चौदहवें गुणस्थानके अन्तिम समय में परम निर्जरा वर्ते है और उस समय के अव्यवहित पीछे समय में मोक्ष वर्तती है । भावार्थ - चौदहवें के अन्त में परमनिर्जरा होती है और गुणस्थानोंके समयका अतिक्रमण कर पीछे झट मोक्ष होजाती है । परम निर्जरा और मोक्षमें एक समयका अन्तर है । निर्जरा कारण है और मोक्ष कार्य है । निर्जरा गुणस्थानोंमें होती
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