________________
११६
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
__ अनेक शब्दोंका पररपरमें समास करनेपर समासविधायक सूत्रोंमें प्रथमा विभक्तिसे कहे गये पद पूर्वमें प्रयोग किये जाते हैं, जैसा कि चौराद् भयं-चौरभयं यहां " काभ्यादिमिः " इस सूत्र से प ( तत्पुरुष ) समास हुआ है । सूत्रमें प्रथमा विभक्तिसे का (पञ्चमी) कही गयी है। अतः का विभक्तिवाला चौर शब्द प्रथम बोला जावेगा, किन्तु द्वन्द्वसमासमें समान विभक्ति वाले ही अनेक पद होते हैं । सबका परस्परमें समास (मिल जाना) है । ऐसी दशामें वहां किस शद्बका पहिले प्रयोग किया . जावे इसके लिये व्याकरणमें अनेक विशेषसूत्र बनाये गये हैं, जैसे कि अल्प अच्वाला पद या स्वन्त ( ध्यन्त ) अथवा पूज्य पद पूर्वमें प्रयोग किया जावेगा । एक घडेमें जौ, चना, ककडी और ज्वारके फूला डालकर पुनः उस बडेको हिलाकर सब पदार्थोंको मिला दिया जावे, ऐसी दशामें भारी पत्थर या कंकडी सबसे नीचे मिलेगी । उससे हलकी वस्तु उसके ऊपर मिलेगी, सबसे ऊपर फूला मिलेंगे, यह वस्तुस्थिति है । इसी प्रकार जीव, अजीव आदिक पदोंका द्वन्द्वसमास ( एकत्र कर संचालन कर देना ) कर देनेपर पहिले किस पदका प्रयोग करना चाहिये ? इसकेलिये आचार्य महाराज यों व्यवस्था करते हैं कि व्याकरण शास्त्रमें वृत्तियां पांच प्रकारकी मानी गयी हैं । कृत् , तद्धित, समास, धातु, एकशेष। यहां प्रकृतमें द्वन्द्वसमास नामक वृत्ति है। जीव और अजीव और आस्रव और (च) बन्ध और संवर और निर्जरा और मोक्ष ऐसा या आस्रव और बन्ध और जीव और मोक्ष और अजीव आदि रूप चाहे जैसा अंटसंट आगे पीछे पदोंका प्रयोग करनेपर ऐसी स्थितिमें विशेष हेतुओंकी सामर्थ्यसे सूत्रमें लिखे अनुसार पदोंकी आनुपूर्वीका ही क्रम ठीक बैठेगा। भोजन करते समय खीर, खिचडी, आम, अंगूर आदि आगे पीछे चाहे जितने पदार्थ जीमलें, पचते समय पेटमें ठीक ठीक क्रम बन जावेगा । घडेमें भरे हुए भिन्न पदार्थोका भारीपन और लघुपन होनेके कारण पदार्थ शक्तिका जैसे उल्लंघन नहीं हो पाता है । कवि सम्प्रदायके अनुसार पुरुषका वर्णन ऊपरके अंगोंसे लेकर पावोंतक किया जाता है और काव्य पुराणों में स्त्रियोंका वर्णन पावोंसे लेकर उत्तमाङ्ग (सिर ) पर्यन्त किया जाता है, इसमें भी ज्ञाता दृष्टाओंके परिणामानुसार व्यवस्था समझनी चाहिये । उत्तम पुरुषको पुरुष देखे या स्त्री देखे, उनकी दृष्टि सबसे प्रथम ऊपरके अङ्ग मस्तक, मुख, वक्षःस्थलपर जाती हुयी नीचे अंगोंतक पीछे पहुंचेगी। तथा स्त्रीजनोंको पुरुष देखे या स्त्री देखे, उन सबकी दृष्टि स्त्रीके पगोंकी ओर सबसे प्रथम जावेगी। पीछे नीचेसे प्रारम्भकर ऊपरके अवयवोंका चाक्षुष प्रत्यक्ष होगा। वैसे ही पदोंका संकलन करनेपर शब्द शक्तिके अनुसार विशेष कारणोंसे उन पदोंका शास्त्रोक्त क्रम घटित हो जाता है। कोई पोल नहीं है कि चाहे जिस पदको अपनी इच्छानुसार चाहे जहां आगे पीछे बोल दिया । बुद्धिशाली पुरुषोंके उच्चारण किये गये आगे पछेिके वाक्योंमें रहस्य भरा रहता है । प्रकरणमें यह बात है कि सातों तत्त्वोंका द्वन्द्वसमास करनेपर सबसे पहिले जीव तत्त्वका विशेष रूपसे कथन किया गया है । क्योंकि सम्पूर्ण वचनोंकी या शास्त्रोंकी प्रवृत्ति होना उस जीवके लिये ही