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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
सप्त जीवादयस्तत्त्वं न प्रकृत्यादयोऽपरे । श्रद्धानविषया ज्ञेया मुमुक्षोर्नियमादिह ॥ १ ॥
यहां मोक्षमार्गके प्रकरणमें जीव आदिक ही सात तत्त्व समझने चाहिये । प्रकृति, महान् ; अहङ्कार, आदि सांख्योंके माने हुए पच्चीस तत्त्व नहीं है और नैयायिकोंसे माने गये प्रमाण, प्रमेय आदि सोलह तत्त्व भी नहीं हैं तथा वैशेषिकोंसे माने गये द्रव्य, गुण, कर्म, आदिक भी सात तत्त्व नहीं है । इस प्रकार बौद्ध, मीमांसक, आदिके माने हुए इनसे भिन्न विज्ञान आदि तत्त्व भी मोक्षाभिलाषी जीवको नियमसे श्रद्धानके विषय नहीं समझना चाहिये।
तथा चानन्तपर्यायं द्रव्यमेकं न सूचितम् । तत्त्वं समासतो नापि तदनन्तं प्रपञ्चतः ॥२॥ मध्यमोक्त्यापि तद्यादिभेदेन बहुधा स्थितम् । नातः सप्तविधात्तत्त्वाद्विनेयापेक्षितात्परम् ॥ ३॥
और इस ही कारणसे यानी मोक्षमार्गके प्रकरणमें मोक्षके उपयोगी होरहे पदार्थोके निरूपणकी आवश्यकता होनेसे ही सूत्रकारने अनन्त पर्यायवाला द्रव्य ही एक तत्त्व है ऐसा सूत्र द्वारा अत्यन्त संक्षेपसे सूचन नहीं किया है । अर्थात् अनन्त पर्यायवाला द्रव्य ही एक तत्त्व नहीं माना है। विचारा जावे तो ऐसा माननेमें बहुत लाघव था, किन्तु मोक्षमें उपयोगी नहीं पडता । और वे द्रव्य अनन्त हैं, ऐसा भी अत्यन्त विस्तारसे सैकडों द्रव्योंका नाम लेकर सूत्र नहीं रचा है । तथा अतिसंक्षेप नहीं, अतिविस्तारसे भी नहीं, ऐसे मध्यम रुचिवाले शिष्योंकी अपेक्षासे कथन करके भी यह सात प्रकारके तत्त्वोंका निरूपण नहीं है, क्योंकि मध्यम कथन करनेसे तो दो, तीन, चार, पांच या आठ, नौ, दस आदि भी वे बहुत प्रकारसे तत्त्वभेद व्यवस्थित किये जासकते हैं । ज्ञान और ज्ञेय या जीव और अजीव अथवा मूर्त अमूर्त इन दो भेदोंमें ही सर्व तत्त्व गर्मित होजाते हैं । अथवा बुद्धि, शब्द और अर्थ या द्रव्य, गुण और पर्याय इन तीन भेदोंमें ही सब तत्त्व गर्भित होसकते हैं। एवं द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव या नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव इन चारोंमें ही सम्पूर्ण तत्त्व प्रविष्ट हो जाते हैं । सातसे अधिक तत्त्व भी मध्यम रुचिसे माने जा सकते हैं । जैसे कि जीवसमासोंके एक, दो, तीन, आदि भेदसे अहानवे (९८) भेद तक हो जाते हैं । इससे भी अधिक भेद हो सकते हैं। इनमें पुद्गल, धर्म आदिकोंके संग्रहके लिये एक भेद जड और मिला दिया जावेगा । जडकें भी मूर्त, अमूर्त आदि अनेक भेद हो सकते है । चौदह मार्गणा, चौदह गुणस्थान, सिद्धपरमेष्ठी, और अचेतन इस प्रकार तत्त्वोंके तीस भेद भी हो सकते हैं। पांच महाव्रत, उत्तमक्षमा आदिक दस