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सस्वार्थचिन्तामणिः
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मुख्यश्च सकलागमार्थस्य परिच्छेदीति तत्संप्रदायाव्यवच्छेदादविरुद्धात्सिद्धोऽस्मदादेरागमार्थनिश्चयो न पुनरपौरुषेयागमसंप्रदायाव्यवच्छेदाचसूक्तमागमः प्रमाणमिदं मूत्रमिति।
___ उस हेतुसे अब तक सिद्ध हुआ कि गुण,पर्याय, अविभागप्रतिच्छेदवाले सम्पूर्ण पदार्थोके विशेष विशेषांशोंको विशदरूपसे प्रत्यक्ष करनेमें समर्थ और शास्त्रों के प्रमेय अर्थका आदिकालमै विधाता होकर व्याख्यान करना चाहिये, और वहीं उस समयमै होनेवाले अनेक गणधर आदिक प्रतिपाद्य ऋषियोंका मुखिया है, तथा सम्पूर्ण आगमके अर्थका उपज्ञ ' आद्यज्ञान ) ज्ञान धारी है । इस प्रकार ऐसे उस सर्वज्ञकी आम्नायके न टूटनेमें आज तक कोई विरोध नहीं है, इस कारण हम आदिक लोगोंको भी उस सर्वज्ञसे कहे गये आगमके अर्थका निर्णय सिद्ध होचुका । किंतु फिर मीमांसकोंसे माने गये किसी पुरुषके द्वारा न किये हुए वेदरूप आगमकी आम्नाय न टूटनेसे अंधपरम्पराके समान विद्वानोंको आज तक अर्थका निर्णय नहीं होसकता है। तभी तो हमने पहिले बहुत अच्छा कहा था कि यह " सम्बन्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः " सूत्र आगमप्रमाणस्वरूप है । यहां तक मीमांसकोंके साथ विचार होचुका है।
ननु च सन्नप्याप्सः प्रवचनस्य प्रणेसास्येति ज्ञातुमशक्यस्तन्यापारादेय॑भिचारित्वाद, सुरागा अपि हि वीतरागा इव चेष्टन्ते वीतरागाश्च सरागा इवेति कश्चित् ।
अब आगमको पमाण न माननेवाले बौद्धोंकी शंका है कि जैनों के कहनेसे थोडी देरके लिये यदि आस मान भी लिया जाय किंतु वह आस इस शास्त्रका अर्थरूपसे बनानेवाला है, यह तो कैसे भी नहीं जाना जासकता है, क्योंकि सर्वज्ञ वीतरागके साथ अविनाभाव रखनेवाले व्यापार, वचन, और चेष्टा आदि हेतुओंका व्यभिचार देखा जाता है। देखिये संसारमें अनेकरागवान् बकभक्त पुरुष दिखाऊ वीतरागोंके समान आचरण करते हैं, और कोई कोई रागद्वेषरहित भी सज्जन रामियोंकेसमान चेष्टा करते हुए देखे गये हैं, अतः वीतराग सर्पज्ञको जानने के लिये कोई कसौटी हमारेपास नहीं है, ऐसा कोई बुद्धमतानुयायी कह रहा है ।
सोऽप्यसम्बन्धप्रलापी, सरागत्ववीतरागत्वनिश्चयस्य कचिदसम्भवे तथा वक्तुमशक्तेः, स्रोऽयं वीवरागं सरागवच्चेष्टमानं कश्चिनिश्चिन्वन् वीतरागनिश्चयं प्रतिक्षिपतीति कथमप्रमत्तः ।
उक्त शंका करनेवाला वह बौद्धभी विना संबंध के बकवाद कर रहा है, स्वयं अपने वक्तव्य के पूर्वापरविरोधका मी इसको विचार नहीं है । जिस पुरुषको सरागपने और वीतरागपनेका कहीं भी निश्चय संभव नहीं है, वह सिलबिल्ला ऐसा मनुष्य उस प्रकार इस बातको नहीं कह सकता है कि रागीजन भी बीतराम साधुओंकीसी चेष्टा करते देखे गये हैं और वीतराग मुनि भी शिष्योंके