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वयार्थचिन्तामणिः
जान सकते हैं। विशेष अंशोंका विशदरूपसे ज्ञान होना प्रत्यक्ष प्रमाणसे ही मानते हैं किंतु संपूर्व अतीन्द्रियदाको प्रत्यक्षरूपसे जाननेवाले जीव संसारमें नहीं है । हम किसी भी पुरुषके न चनाये हुए वेदको अनादि मानते हैं। आकाश, आत्मा, पुण्य, पाप, स्वर्ग, नरकके सामान्य रूपसे जानकी हमको आकांक्षा है । अनादिकालीन वेदके द्वारा ही सामान्यरूप से अतीन्द्रियतत्त्वों के उपदेशका निर्दोष सम्पूर्ण विधि विधान होता है । ग्रंथकारका निरूपण है कि यदि मीमांसक ऐसा करेंगे तो हम कहते हैं कि तब तो आप वेदको आगमप्रमाणरूप साधनका परिश्रम भी क्यों करते हैं । अनुमानसे उन अतीन्द्रिय पदार्थोंका ऐसा समान्यरूपसे ज्ञान हो जावो, “सम्पूर्ण पदार्थ अनेकांतात्मक हैं सत्स्वरूप होनेसे । तथा सर्व चराचर वस्तुएँ प्रकृति और पुरुष स्त्ररूप हैं प्रमेय होनेसे " । इत्यादि अनुमानोंके द्वारा हम सर्व जीवादि पदार्थों को जान ही लेते हैं । अतः सामान्य रूपसे जानने में वेदकी कोई उपयोगिता सिद्ध नहीं है ।
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प्रत्यक्षानुमानाविषयत्व निर्णयां नागमाद्विनेति तत्प्रामाण्यसाधने प्रत्यक्षानुमानागमाविषयत्वविशेष निश्चयोऽपि न केवलज्ञानाद्विनेति तत्प्रामाण्यं किं न साध्यते ।
यदि आप मीमांसक यह कहेंगे कि जिन प्रमेयों को हम लोगों के प्रत्यक्ष और अनुमान नहीं जान सकते हैं ऐसे स्वर्ग, अदृष्ट, देवता आदि पदार्थोंका जानना वेदरूप आगमके विना नहीं होवेगा । इस कारण वेदरूप आगमका प्रमाणपना हम सिद्ध करते हैं ऐसा कहनेपर हम जैन भी कहते हैं कि जिन अत्यंत परोक्षतत्वों में प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम प्रमाणोंकी गति नहीं है ऐसे धर्मद्रव्य, कालाणुएँ, सूक्ष्म पर्यायें, और अत्रिभाग प्रतिच्छेद आदि विषयोंका निर्णय करना भी केवलज्ञान के बिना नहीं होसकता है । अर्थात् अत्यंत सूक्ष्म तत्वोंके जानने में हमारी इन्द्रियाँ भी समर्थ नहीं हैं तथा उन तत्वोंके साथ अविनाभाव रखनेवाला कोई हेतु भी नहीं है और किसी वक्त के द्वारा संकेतग्रहण करके शब्दद्वारा जाननेका भी प्रकरण प्राप्त नहीं है ऐसे सूक्ष्म, देशांतरित और कालांतरित पदार्थोंको जाननेवाले केवलज्ञानको प्रमाणपना क्यों नहीं सिद्ध किया जावेगा ? अर्थात् अवश्य सिद्ध किया जावेगा ।
न हि तृतीयस्थानसंक्रान्तार्थ भेद निर्णयासम्भवे ऽनुमेयार्थनिर्णयो नोपपद्यत इत्यागमगम्यार्थ निश्चयस्तत्त्वोपदेशहेतुर्न पुनश्चतुर्थस्थानसंक्रान्तार्थनिश्वयोऽपीति युक्तं वक्तुं तदा केवलज्ञानासम्भवे तदर्थनिश्चयायोगात् ।
इसपर मीमांसक यदि यह कहेंगे कि हमारे यहां यद्यपि प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थात और अमान ये छत्र प्रमाण माने हैं किन्तु उनमें तीन प्रथमके प्रधान हैं । तिनमें प्रत्यक्षगम्य घट, पर, गृह आदिकको तो हम पहिले प्रत्यक्षप्रमाणसे जानना मानते हैं और धूमहेतुके