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________________ तत्त्वाचिन्तामणिः द्वारा परोक्ष अर्थोके जाननेका अलिश है । उसी प्रकार सर्वज्ञके ज्ञानमें स्वतः ही त्रिकाल त्रिलोक पदार्थों का प्रत्यक्ष कर लेना रूप चमत्कार है इस बात को हम भी अनुमानसे जानते हैं । जैसे ही कि आप मानते हैं कि इंटिय, हेतु, अर्थापत्ति और अभाव प्रमाणसे न जानने में भावे ऐसे शाखोमें कहे गये अतीन्द्रियपदार्थोंका बढ़िया आगमज्ञान किन्हीं किन्हीं तैसे विद्वानों में देखा गया है । अतः आविगुरु ब्रह्मा, मनु, आदिको भी इन्द्रियप्रत्यक्ष, अनुमान, अर्थापति और अभावप्रमाणोंसे न जाने जावें ऐसे वेदविषय उन सदृश पदार्थोंका ज्ञान अवश्य सम्भावनीय है । भावार्थ - अर्थीपत्ति प्रमाणसे आप अतीन्द्रियज्ञानीको सिद्ध करेंगे, उसी प्रकार इम जैन भी कहते हैं कि अनेक आचार्य और विद्वानोंको पुण्य, पाप, स्वर्ग, मोक्ष, आत्मा, मेदविज्ञान, सुमेरुपर्वत आदिका ज्ञान है, ह आदि उन पदार्थों के प्रत्यक्षदर्शी सर्व के विना नहीं हो सकता है । अतः केवलज्ञान भी मानना चाहिए अर्थात् अनुमान प्रमाणसे हम भी केवलज्ञानीको सिद्ध करते हैं । इस बातको भविष्य अधिक स्पष्टरूप से आपके प्रति निवेदन कर देवेंगे । विश्वास रखिये । I A b ን ૬ ६ VA ततः सकलागमार्थविदामिव सर्वविदां प्रमाण सिद्धत्वान्नानुपलभ्यमानानां परिकल्पना, नापि तैर्विनैव हेयोपादेयतत्त्वनिर्णयः, सकलार्थविशेषसाक्षात्करणमन्तरण कस्यचिदर्थस्या क्षूणविधानायोगात् । उस कारण अबतक सिद्ध हुआ कि आगमप्रमाण के द्वारा संपूर्ण पदार्थों के जाननेवाले श्रद्मा, मनु आदि विद्वान् जिस तरह आपके यहां प्रमाणसे सिद्ध हैं, उन्हींके समान सर्व प्रमेयोंको केवलज्ञानसे जाननेवाले सर्वज्ञ भी पुष्ट प्रमाणोंसे प्रसिद्ध हैं । अतः अतींद्रिय प्रत्यक्षसे सर्वको जाननेशले सर्वज्ञका मानना निश्चित किये हुओंका ही हैं। प्रमाणसे नहीं जाने गये हुओं की कल्पना नहीं है । जैनविद्वान् नहीं जानने योग्य पदार्थों को स्वीकार नहीं करते हैं और विना उन सर्वेज्ञके माने हो आत्मा, पुण्य, पाप, नरक, स्वर्ग आदि हेय और उपादेय पदार्थों का निश्चय भी नहीं हो सकता है, क्योंकि सम्पूर्ण पदार्थोंका विशेष विशदरूपसे प्रत्यक्ष किये बिना आत्मा, परमात्मा परमाणु, अद्दष्ट, आदि किसी भी अर्थका निर्दोष रूपसे विधान नहीं हो सकता है । वीतराग, हितोपदेशक, सर्वज्ञ ही तत्रोंकी विधि करता है ! अन्यके यह योग नहीं है । सामान्यतस्तच्वोपदेशस्याक्षूणविधानमाम्नायादेवेति चेत् तनुमानादेव तथाtrafa किमागमप्रामाण्यसाधनायासेन । मतिबादी कहता है कि अनुमान और आगम प्रमाणोंसे पदार्थों का ज्ञान विशब्दरूप से नहीं होता है किंतु सामान्यरूप से होता है। जैसे कि अभिको आवाश्य या धूमसे जाननेपर अभिके त्र, खैर, आमकी लकड़ीकी यह आग है, इतनी लम्बी चौड़ी है आदि विशेष अंशोंको हम नहीं
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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