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________________ ७४ तत्त्वावचिन्तामणिः चौवीस नायक की आम्नायसे मोक्षमार्गका उपदेश अटूट सिद्ध है। हां, आप्तमूलत्व हेतुसे सूत्रको आगमप्रमाणरूप सिद्ध करनेवाले पूर्वोक्त अनुमानसे हम केवल इतना ही सिद्ध करते हैं कि इस भरत क्षेत्रमें आज कल पंचमकाल दुःषमामे हम लोगोंको भी वह गुरुपर्वक्रमसे चला आया हुमा गोक्षमार्गका उपदेश भागम प्रमाण रूप है । अन्य क्षेत्रों में अब भी और यहां भी अन्य कालों में मोक्षक उपदेशका व्यापक रहना सिद्ध है, किंतु प्रकृत अनुमानसे यहां आज कल हम लोगोंके लिये ही सूत्रका आगमप्रमाणरूप सिद्ध करना उपयोगी है। कपिलायुपदेशस्यैवं प्रमाणता स्यादिति चेत् न, तस्य प्रत्यक्षादिविरोधसद्भावाद । यहां भीमांसक कहते हैं कि इस प्रकार गुरुओंकी धारासे ही यदि मोक्षमार्गके उपदेशको प्रमाणपना मानोगे तो कपिल, जैमिनि, कणादके उपदेश भी इसी प्रकार प्रमाण हो जायेंगे । वे भी अपने सूत्रोंको गुरुधारासे आया हुआ मानते हैं । आचार्य कहते हैं कि यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि उन कपिल आदिके उपदेशोंको प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम आदि प्रमाणोंसे विरोध है । भावार्थ उपदेशोंको आप्तमूलत्व सिद्ध करनेमें सम्प्रदायके अव्यवच्छेदका विरोध न होना रूप हेतु है । वह कपिलादिक उपदेशाम घटता नहीं है | यों तो चोरी आदिके उपदेश भी चोर डॉकुओंके उस्तादोद्वारा चले आ रहे हैं । एतावता क्या वे आप्तमूलक हो जायेंगे ! कभी नहीं ! जिस प्रकार आखेट, धूत आदिके उपदेश प्रत्यक्ष, अनुमानोंसे विरुद्ध हैं तथा अतिप्राचीन होकर भी मिथ्या है, उसी प्रकार जैमिनि, कपिल आदिके पशुवधपूर्वक यज्ञ करना, क्षुधित अवस्था दूसरोंका धन बलात्कारसे जबरदस्ती छीनलेना, मोक्षकी अवस्थामे ज्ञान न मानना, आत्माको कूटस्थ या व्यापक स्वीकार करना आदि उपदेश भी प्रमाणविरुद्ध हैं। नन्याप्तमूलस्याप्पुपदेशस्य कुतोऽर्थनिश्चयोऽसदादीनाम् ? न तावत्स्वत एव चैदिकबचनादिवत्पुरुषव्याख्यानादिति चेत्, स पुरुषोऽसर्वशो रागादिमांश यदि तदा तव्यारुपानादर्थनिश्चयानुपपचिरयथार्थाभिधानशंकनात्, सर्वक्षो वीतरागश्च न सोडदानीमिष्टो पतस्तदर्थनिश्चयः स्यादिवि कश्चित् । यहां कोई प्रतिवादी पंडित शंका करता है कि आसको मूल कारण मानकर वह उपदेश प्रवर्तित हुआ है, यह बात माननेपर मी उस आप्तके सूत्ररूप उपदेशसे हम लोगोंको उसके अर्थका निश्चय कैसे होगा ! यदि जैनोंकी ओरसे इसका उत्तर कोई इस प्रकार कहेंगे कि उस सूत्रसे विना किसीके समझाये अपने आप ही श्रोताओंको अर्भका बोध होता चला जाता है, यह उत्तर ठीक
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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