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सत्स्वाचिन्तामणिः
संतोषके हेतुपनेसे वस्तुपना व्याप्त नहीं है। अर्थात्-जो संतोषका कारण है, वही वस्तुभूत है। ऐसी कोई व्याप्ति नहीं है। क्योंकि किसी किसी जीवके किसी पदार्थमै द्वेष होबानेसे संतोष उत्पन्न नहीं होपाता है। फिर भी उस पदार्थको वस्तुपना सिद्ध है। क्या कूडा कांटा वस्तुभूत नहीं है ! रोग, दारिश्य, मृत्यु, किसीको संतोषके कारण नहीं हैं। फिर भी वे वस्तुभूत हैं । नरक, निगोद, मी वास्तविक पदार्थ सिद्ध है। और यह भी कोई व्याप्ति सिद्ध नहीं है कि जो जो वस्तुमूत है, वही संतोषका कारण है। क्योंकि अवस्तुमूतको मी कल्पनामें आरूढ रखकर रागसे किसी व्यक्तिको संसोष हो रहा देखा जाता है । मिट्टीके खिलौनोसे बच्चोंको मुख्य वस्तुके समान संतोष हो जाता है । श्मश्चनवनीतको मविष्यके विवाह, लडका होना आदिकी कल्पनासे आनंद उत्पन्न हुआ था। आकाश, पातालके कुलावे मिलानेके समान अण्ट सण्ट गढ लिये गये उपन्यासोंके अवस्तुरूप तत्वको पढकर मनुष्योको हर्ष होता है । ईसी, रडा आदिमें तो बहुभाग असत्य पदार्भ ही होते है। मनुष्यको मनुष्य कहनेसे मिलीली इंसी आती है । अतः भवस्तुभूत कल्पित पदार्थ भी अंतरंगमें रागबुद्धि हो जानेसे हर्षके कारण बन जाते हैं। इस कारणसे सिद्ध होता है कि जिस पदार्थकी विद्यमानता बाधक प्रमाणोंके असम्भव होनेका निश्चय है, वही अस्वम पदार्य होवे । परिक्षेपसे यह निकल गया कि जिस पदार्थको सत्ताका निषेध करनेवाला बाधक प्रमाण विद्यमान है, वह स्वप्नधानका विषय है । इस प्रकार स्यादाद सिद्धांतके अनुसार आपको निर्णय कर लेना चाहिये।
बाध्यमानः पुनः स्वप्नो नान्यथा तद्भिदेश्यते । स्वतःक्वचिदबाध्यत्वनिश्चयः परतोऽपि वा ।। १५८ ॥ कारणद्वयसामर्थ्यात्सम्भवन्ननुभूयते । परस्पराश्रयं तत्रानवस्थां च प्रतिक्षिपेत् ॥ १५९ ॥ जिस प्रमेयमें बाधक प्रमाणों के असम्भक्का निश्चय है, वह अस्वम है अर्थात् सत्य है। और फिर जो ज्ञेय पदार्थ फिर बाधक प्रमाणोंसे बाधित किया जारहा है, अर्थात् असत्य है । अन्य दूसरे प्रकारोंसे उन स्वम और अस्वप्नों में भेद नहीं देखा जाता है । अबाधितपन और पाषितपन जानलेना कोई कठिन नहीं है। किसी किसी प्रमाण ज्ञानमें स्वयं अपने आप ही अबाध्यपनेका निश्चय हो जाता है और किसी किसी प्रमाणज्ञानमें दूसरी अर्थक्रियाओं अथवा अनुमान या प्रत्यक्ष प्रमाणोंसे मी आधारहितपनेका निश्चय हो जाता है। अंतरंग और बहिरंग दोनों कारणोंकी सामस्य॑से शानमै सम्भव होता हुआ अबाषितपनेका निश्चय होना अनुभवमें आ रहा है । अभ्यासदशाके जनजान बाषा रहिसपना का प्रमाणपना अपने आप प्रतीत हो जाता है। हां, अनभ्यास दशा में शीतवायु, फूलोंकी गंध, आदिसे जलशानके अबाधितपनेका निर्णय हो जाता है। या स्नान, पान,