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तस्वाचिन्तामणिः
स्वप्नसिद्धं हि नो सिद्धमस्वप्नः कोऽपरोऽन्यथा । संतोषकृन्न वै स्वप्नः संतोषं न प्रकल्पते ॥ १५६ ॥ वस्तुन्यपि न संतोषो द्वेषातदिति कस्यचित् ।
अवस्तुन्यपि रागात् स्यादित्यस्वप्नोस्त्वबाधितः ॥ १५७ ॥ "स्वप्नमें कल्पनासे सिद्ध करलिया गया जो पदार्थ है, वह अवश्य सिद्ध नहीं है । अन्यथा यानी स्वप्नको भी यदि वास्तविक सिद्ध मानलोगे तो दूसरा कौन अस्वप्न पदार्थ सिद्ध हो सकता है ? भावार्थ-जागृत दशाके जाने हुए तत्व भी अन्तर न होनेके कारण स्वमसिद्ध हो जावेमे । यदि बौद्ध यों कहें कि स्वम तो संतोष करनेवाला ही नहीं है । किन्तु अस्वप्न यानी जागरण कृत्य सन्तोष कर देता है, यह अंतर है। सो यह भी कल्पना करना अच्छा नहीं है। क्योंकि संतोष करने और न करनेकी अपेक्षासे जागृतदशा और स्वम अवस्था समान ही है। कमी कभी किसी किसीको द्वेषवश वस्तुभूत अनिष्ट पदार्थ भी वह संतोष होना नहीं देखा जाता है। और किसीको रागवश अवस्तु पदार्थों में भी संतोष होना देखा जाता है। इसप्रकार सतोष करने और न करनेके कारण स्वन और अस्वमकी व्यवस्था नहीं है । अन्यथा कूड़ा करकट अवस्तु हो जावेगा ओर भ्रांतवानीके दो चंद्रमा या तमारा रोगवाले पुरुषके तिलूला आदि असत् पदार्थ वस्तुभूत हो जायेंगे | एक लोमी बामणका स्वम देखते समय दक्षिणा मिली हुयी गायोंको विक्री करते हुए न्यून रुपया मिलनेपर घनसा कर जग जाना और पुनः आंख मींच कर " पांच सौ न सही जो बीस गायोंके चार सौ रुपये देते हो सो ही दे दो। ऐसा कहना, अब तो उस कहनेवाले ब्राह्मणके वे रुपये मी वस्तुभूत मन जावेंगे | क्योंकि भोडी देरके लिये वे संतोषके कारण बन चुके हैं। इस कारण अस्वामका निदोष लक्षण यही मानना चाहिये कि जो त्रिकालमें उत्तरवर्ती वाषक प्रमाणोंसे रहित है।
यथा हि खमसिद्धमसिद्ध तथा संवृत्तिसिद्धमप्यसिद्धमेव, कथमन्यथा स्वमसिद्धमेव न मवेत्तथा च न कश्चित्ततोऽपरोऽस्वमः स्यात् ।
जैसे कि जो स्वप्नमें थोड़ी देरके लिये सिद्ध मान लिया गया है, वह निश्चय कर असिद्ध ही है, वैसे ही जो असमूतव्यवहारसे कल्पितकर प्रसिद्ध मान लिया गया है, वह भी वाखविकरूपसे असिद्ध ही है। अन्यथा यानी यदि ऐसा न माना जावेगा तो स्वप्नमें प्रसिद्ध कर लिए गये समुद्र, सिंह, की, मूत आदि पदार्थ भी वस्तुरूपसे सिद्ध ही क्यों न हो जायेंगे। वैसा होनेपर तो उस स्वप्नसे मिन्न कोई दूसरा पदार्थ यानी जागती हुषी अवस्थाका तस्व भस्वप्नरूप न हो सकेगा। भावार्थ-स्वप्न के तत्व भी जब वास्तविक प्रसिद्ध हो गये तो सोते हुए और जागते हुए पुरुषके द्वारा जाने गये तस्वों में कोई असर नहीं रहा । तक तो यह किंवदंती पर जावेगी कि