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तवा चिन्तामणिः
किसीका कहना मी उस पहिलेके समान ही है अर्थात् जिसीका निर्णय करना है, वही नियामक कारण बनाया जा रहा है। दूसरी बात यह और है कि उक्त कथनमें यह परस्पराश्रय दोष भी है कि धान पीज, गेहूं, जौ, मादि हैं कारण जिनके ऐसे धान अंकुर, गेई संकुर, जौ अंकुर है, इस प्रकार सिद्ध हो जानेपर तो धान अंकुर आदिको उन बीजोंकी कार्यता सिद्ध होगी और धान मादि बीजोंकी वह कार्यता जब धान आदि अंकुरों में सिद्ध हो जावेगी तन धान आदि अंकरों के धान आदि बीज कारण है, यह बात सिद्ध होगी। इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष हुआ।
तदनुमानात प्रत्यक्षप्रतीने तस्य सत्कार्यवे समारोपः कस्यचिव्यवस्छियत इत्यप्यनेनापास्त, स्वयमसिद्धात्साधनात् वयवच्छेदासम्भवात् ।
बौद्ध कहते हैं कि वसुभूत पदार्थोंका प्रत्यक्ष ज्ञान ही होता है। उस अनुमान शान तो केवल संशय, विपर्यय, अनव्यवसाय और मज़ानरूप समारोपाचोदी र करता है। इतने ही अंशसे ममाण है । वैसे तो अनुमान निश्चयालक है और सामान्यको विषय करनेवाला है। इन हेतुओंसे अप्रमाण होना चाहिये । पदार्थों में क्षणिकपना सत्व हेतुसे उत्पन्न हुए अनुमान द्वारा नहीं जाना जाता है। वह वस्तुभूत क्षणिकपना को पूर्व में ही निर्विकल्पक प्रत्यक्षसे ज्ञात हो चुका था। किंतु कतिपय जीवोंको पदायोंमें कुछ कालतक स्थायीपने या नित्यपनेका मिथ्याज्ञान हो जाता है। अतः उस समारोपके दूर करनेके लिये अनुमानसे क्षणिकरखका निर्णय करा दिया जाता है। इसी प्रकार प्रकृतमें मी उस धान बीजकी कारणता और पान अंकुरमें उस कारणकी कार्यता तो प्रत्यक्षप्रमाणसे ही जान ली जाती है। किंतु किसी अज्ञानीको उस प्रत्यक्षित विषयमें कदाचित् विपरीत समारोप हो जाता है तो पूर्वोक्त अनुमानसे उस समारोपका व्यवच्छेद मात्र कर दिया जाता है। कार्यता और कारणता वक्तियोंका प्रतिभास करना तथा प्रतिनिक्म करना ये सब पत्यक्षके द्वारा ही जान लिये जाते है । अतः हम बौद्धोंके कहे हुए पहिले अनुमानमें साध्यसम और अन्योन्याभव दोष लागू नहीं हो सकते हैं। ग्रंथकार कहते है कि इस प्रकार कयन करनेवाले बौद्ध भी हमारे इसी दोषोस्थापनसे निराकृत हो जाते है। क्योकि जबतक बौद्धोंका हेतु ही स्वयं उन्हें मी सिद्ध नहीं हुआ है तो ऐसे प्रसिद्ध हेतुसे उस समारोपका निराकरण करना असम्भव है।
वदनन्तरं तस्योपलम्भासत्कार्यत्वसिद्धिरित्यपि फल्गुप्राय, शारयकरादेः पूाखिलाथकार्यवासंगार । शालिबीजाभावे तदनन्तरमनुपलम्मान तत्कार्यस्त्वमिति चेत्, साईन्धनाभावेऽझारायवस्थामेरनन्तरं धूमस्यानुपलब्धेरमिकार्यस्वं माभूव, सामग्रीकार्यत्वादमस्य मामिमात्रकार्यसमिति चेत्, तर्हि सकलार्थसहितशालिपीजादिसामग्रीकार्यत्वं शास्पधुरादेरस्तु विशेषाभावात् । तया च न किञ्चित्कस्यचिदकारणमकार्य पेति सबै सर्वसादनुमीयतेति वा कुतश्चित किञ्चिदिति नानुमानास्कस्यचिच्छक्तिप्रविनियमसिद्धिर्यतोऽन्वय म्पविरकप्रतिनियमः कार्यकारणभावे प्रतिनियमनिधनः सिध्धेत् ।