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तस्यार्यविभ्यामणिः
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उस शालि बीजके अव्यवहित- उत्तरकालमै वद्र चावलोंका अंकुर पैदा होता हुआ देखा जाता है । इस अन्वयरूप हेतुसे शालि अंकुरको उस शालिबीजका कार्यपना सिद्ध हो जाता है । यह बौद्धका कहना भी बहुभागमें व्यर्थ ही है । क्योंकि यों तो शालि अंकुरके पहिले कालमै रहनेवाले संपूर्ण तटस्थ पदाको कारणता हो जावेगी । शालिबीजका और गेहूं, जौ, चना, कुलाळ, कृषक आदिका भी वही काल है । अतः शालिवीजके समान गेहूं जादिका भी वह चालि अंकुर कार्य बन जावेगा, यह प्रसंग तुम्हारे ऊपर हुआ। बंदि आप सोपान बीजके न होनेपर गेहूं आदिसे उनके अव्यवहित उत्तर फालमै धान अंकुर पैदा होता हुआ नहीं देखा जाता है, इस व्यतिरेककी सहायता से उसके कार्यपन न होनेकी सिद्धि करोगे तो गीले ईन्धनके न होनेपर अंगारा, जला हुआ कोयला, और तपे हुए लोsपिण्डकी अभिके अव्यवहित उत्तरकालमें धूम पैदा हुआ नहीं देखा जाता है, अतः धूम भी अभिका कार्य न होओ। भावार्थ- कारणके अभाव होनेपर कार्येके न होने मात्र से कार्यताका यदि निर्णय कर दिया जाये तो अमिका कार्य धूम न हो सकेगा। क्योंकि अङ्गार कोयलेकी अमि रहते हुए भी घूम नहीं हुआ। अभिके न होनेपर घूमका न होना ऐसा होना चाहिये था । तब कहीं धूमका कारण अभि बनती। यदि आप बौद्ध इसका उत्तर यों कहें कि गीला ईषन, अमि वायु, आदि कारणसमुदायरूप सामग्रीका कार्य घूम है, केवल अमिका ही कार्य नहीं है । अतः हमारा व्यतिरेक नहीं बिगड सकता है । उस अंगारे या कोयले की अभिके स्थानपर पूरी सामग्री के न होनेसे धूमका न होना ठीक ही था। आचार्य समझाते हैं कि यदि बौद्ध ऐसा कहेंगे तो गेहूं, चना, मिट्टी, खेत, खात, कुलाल, कोरिया, आदि सम्पूर्ण पदार्थोंसे सहित मानबीज या जौ बीज, आदि कारण समुदायरूप arastका कार्यपना धान अंकुर, जौ अंकुर आदिमें हो जावे कोई अंतर नहीं है तथा वन तो ऐसी अव्यवस्था हो जानेपर न कोई किसीका अकारण होगा और न कोई किसीका अकार्य होगा। क्योंकि आपकी सामग्री पढे पेट कारणोंके अतिरिक्त अनेक उदासीन थोथे पोले पदार्थ प्रविष्ट हो जायेंगे । जबतक नियत कारणोंका निश्चय नहीं हुआ है, तबतक कार्यके पूर्व काल अनेक पदार्थ कारण बनने के लिये सामग्री में पतित होरहे हैं। बाप बननेके लिये भला कौन निषेध करेगा । तथा उत्तर समयवर्ती सभी पदार्थ चाहे जिस कारण के कार्म बन जायेंगे । गायकी सम्पत्ति लेने के लिये और नवजन्म धारण करनेके लिये बेटा बनना भी किसको अनिष्ट है। इस प्रकार पोल चलनेपर तो सब कार्यों में से किसी भी एक कार्यसे संग कारणोंका अनुमान किया जा सकेगा अथवा किसी भी कार्यसे चाहे जिस तटस्थ अकारणका अनुमान किया जा सकेगा । कोई भी व्यवस्था न रहेगी। अँधेर छा जायेगा। अंधेरेसे सूर्यका अनुमान और शीतवायुले अभिका मी अनुमान हो जावेगा । इस प्रकार आप बौद्धों के यहां अनुमान से भी किसी भी कार्य या कारणकी कियों का प्रत्येकरूप से नियम करना सिद्ध नहीं हो पाता है, जिससे कि आपके द्वारा पहिले कहा गया अन्त्रयव्यतिरेकका प्रतिनियम करना कार्यकारणभाव में प्रतिनियमका कारण सिद्ध होता, अर्थात्
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