SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तस्वार्थचिन्तामणिः कैसे सिद्ध किया है। कहिये। पहिले प्रत्यक्ष प्रमाणसे तो यह सिद्ध नहीं होसकता है कि धानबीजका कार्य घान अंकुर है । क्योंकि जिस क्यारी में धान, जौ, गेहूं या ज्वार, मका, बाजरा एकसाथ बोदिये गये हैं, वहां गीली मिट्टीके मीतर सब ही बीज छिपाये हैं। ऐसी दशा में किस वीजसे कौनसा अंकुर हुमा, इसका निर्णय करना बहिरिन्द्रियजन्य प्रत्यक्षका कार्य नहीं है। यों वहां प्रत्यक्षमें उस कार्यकारणका प्रतिभास नहीं होता है । अन्यथा सभी बाल गोपालोको या नागरिकोंको उसी प्रकारसे निर्णय हो जाता। ऐसे संशय करनेका प्रसंग पण्डितोंतकको नहीं आना चाहिये था कि यह अंकुर गेहूंका, पानका, या जीका है। किन्तु संशय होता देखा जाता है | अतः प्रत्यक्ष से कारणको कार्यको उत्साद करानेवाली शक्तिका और कार्यकी कारणोंसे जन्यत्व शक्तिका नियम करना जैसे नहीं बन सकता है, वैसे ही धान बीजसे ही धान अंकुर कार्य उत्पन्न हुआ है, यह भी लौकिक प्रत्यक्षसे नहीं जाना जा सकता है। एक बात यह है कि यद्यपि कमी कभी चने, जौ, गेहूं, पानमें केवल जलका संयोग होनेपर छोटा अंकुर निकला हुआ दीखता है। किन्तु वह प्रकृतमें अंकुर नहीं माना है। वह तो कुल्ला है । मिट्टी चीजके सद्ध गलजानेपर जो सीजफा उत्तर परिणाम बड्डा अंकुर हो जाता है, उसका कार्यकारणभाव यहां अभिप्रेत है। वही भविष्यमे नीज सन्ततिको उपजावेगा । एकेन्द्रिय जीवोकी संवृत यानी ढकी हुई योनि मानी है। सद्भावभावाल्लिङ्गात्तसिद्धिरिति चेन्न, साध्यसमत्वात् । को हि साध्यमेव साधनस्वेनाभिदधातीत्यन्यत्रास्वस्थान , वद्भावभाव एव हि तत्कार्यत्वं न ततोन्यत् ।। यदि बौद्ध जन उस धान बीजके होनेपर धान अंकुरका होना इस अन्वयरूप हेतुसे अनुमान प्रमाणद्वारा धान अंकुरमें धान बीजका वह कार्यपना प्रसिद्ध करे सो तो ठीक नहीं है। क्योंकि यह हेतु मी साध्य के समान असिद्ध होनेसे साध्यसम हेवाभास है । घानवीजके होनेपर ही धान अंकुर कार्य हुआ है। यही तो इमको साध्य करना है और इसीको आप देत बना रहे हैं। ऐसा भला कौन पुरुष है जो कि साध्यको ही हेतुपने करके कथन करें । अस्वस्थ के अतिरिक्त कोई ऐसा पोंगापन नहीं करता है । विचारशील मनुष्य असिद्धको साध्य बनाते है और प्रसिद्धको हेतु बनाते हैं। किन्तु जो आपेमें नहीं हैं या कठिनरोगसे पीडित हैं, अज्ञानी है, वे ही ऐसी अयुक्त बातोंको कहते हैं। देखो, उस धान बीजके होनेपर धान अंकुरका होना ही तो नियमसे धान पीजका घान अंकुरमे वह कार्यपना है । उससे भिन्न कोई उसकी कार्यता नहीं है। शाकिबीलादिकारणकत्वाच्छाल्यङ्करादेस्तत्कार्यत्वं सिद्धमित्यपि ताहगेवपरस्पराश्रित चैतत् , सिद्धे शालिपीजादिकारणकत्वे शाल्यकुरादेस्तत्कार्यस्वसिदिस्तत्सिद्धौ च शालिबीबादिकारणत्वसिद्धिरिवि। .. धान बीज, जौ, आदिक हैं कारण जिसके ऐसा जो कार्य है वह धानका या जौ आदिका अंकुर है । इस उन बीजरूप कारणोंकी उन अंकुरों में कार्यता सिद्ध हो ही जाती है । इस प्रकार 76
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy