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________________ तलापियामणिः ५१७ संसारका कारण मिच्यादर्शन मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्ररूप है। क्योंकि विपर्यासमें लगी हुयी मिथ्या अभिनिवेशरूप शक्तिको ही मिथ्यादर्शनपना है तथा झूठे अर्थोंको इटसहित जानलेना स्वयं विपर्ययरूप तो मिथ्याज्ञान है ही, और विपर्ययमें विद्यमान राग, द्वेष, आदिकको प्रगट करानेकी शक्तिको मिथ्याचारित्र कहना चाहिये । इसप्रकार अभेदको ग्रहण करनेगली द्रव्यदृष्टिस तीन शक्तियुक्त मिथ्याज्ञान ही मिथ्यावर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्ररूप है। तथा च मोक्ष और संसारका मार्ग तीन संख्यावाला सिद्ध हुआ । ततो मिथ्याग्रहावृत्तशक्तियुक्तो विपर्ययः । मिथ्यार्थग्रहणाकारो मिथ्यात्वादिभिदोदितः ॥ १०३ ॥ उस कारण झूठा अन्धविश्वास, झूठा मानना और झूठी क्रिया करना इन तीन शक्तियोंसे या मिथ्या, अभिनिवेश और मिथ्याचारित्र इन दो शक्तियोंसे सहित होरहा विपर्ययज्ञान ही मिय्या मतस्वरूप अभाको ग्रहण करने का उल्लेख करता हुमा पर्यायाथिक नयकी अपेक्षासे मिथ्याव आदि यानी मिय्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र इन तीन मेदोंसे कहा जाता है । न हि नाममात्रे विवादः स्याद्वादिनोऽस्ति कचिदेकनार्थे नानानामकरणस्याविरोधात् । तदर्थे तु न विवादोऽस्ति मिथ्यात्वादिभेदेन विपर्ययस्य शक्तित्रयात्मकस्पेरणात् । ___अकेले शब्दके मेद हो जानेसे केवल नाममें स्थाद्वादी लोग विवाद नहीं करते हैं। क्योंकि किसी एक अर्थमें भी अनेक मिन्न भिन्न प्रकारके नाम कर लेनेका कोई विरोध नहीं है। एक पदार्थका कतिपय नामोंसे वाचन हो जाता है । किन्तु उसके वाच्य अर्थमें कोई झगडा नहीं है । प्रकृतमें तीन सामोसे तवारमक होरहे विपर्ययको नैयायिकोंके द्वारा मिध्यादर्शन मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्रके भेदसे ही निरूपण किया गया है। वह और अलंकारोंसे सहित देवदनका कहना और पृथकरूपसे वस्त्र, अलंकार और देवदत्त इन तीनोंका कहना एक ही प्रयोजनको रखता है । अत्यन्त सूक्ष्म अन्सरका इस प्रकरणमें विचार नहीं है । अतः प्रेरणा अनुसार तीनको संसारका मार्गपना नैयायिकोंने इष्टकर लिया समझना चाहिये ।। तथा विपर्ययज्ञानासंयमारमा विबुध्यताम् । भवहेतुरतत्त्वार्थश्रद्धाशक्तित्रयात्मकः ॥ १०४ ॥ जिस प्रकार केवल मिथ्याज्ञानको संसारका कारण कहनेवालोंको अर्थापत्तिके द्वारा प्रेरित होकर तीन प्रकारसे संसारका मार्ग मानना पडता है, वैसे ही विपर्ययज्ञान और असंयम रूप दो को 'संसारका मार्ग माननेवालोंके द्वारा भी संसारका कारण अतत्त्व अर्थोकी श्रद्वारूप शक्तियुक्त दो को कारण माननेसे तीन प्रतिवरूप ही संसारका कारण माना गया समझ लेना चाहिये ।
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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