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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः उन दोनों पक्षोंमें आपका माना हुआ पहिला पक्ष ठीक नहीं है । क्यों कि सरशताका अवलम्ब करनेवाले प्रत्यभिज्ञानसे यह वही शब्द है, ऐसी एकताको पुष्ट करनेवाली प्रवाहनित्यता की सिद्धि नहीं हो सकती हैं । सदृशपना तो भिन्न पदार्थों में पाया जाता है । ४८ द्वितीय तु कुतस्तदेकत्व निबन्धनत्वसिद्धिः । यदि आप एकलप्रत्यभिज्ञानसे शन्दकी नित्यताको मानते हुए दूसरा पक्ष स्वीकार करोगे तो शब्दके पूर्वापर एकपनेको कारण मानकर उत्पन्न हुए यह वही शब्द है ऐसे प्रत्यभिज्ञानको प्रमाणपनेके कारण एकपनेकी सिद्धि कैसे होगी ? अर्थात्-यह प्रत्यभिज्ञान पहिले पिछले शब्दके एकपनेको ही कारण मानकर प्रमाणस्वरूप उपजा है यह कैसे निर्णय किया जाय ? समझाओ स एवायं शब्द इत्येकशब्दपरामर्शिप्रत्ययस्य बाधकाभावात्चनिबन्धनत्वसिद्धिस्तत एव नीलज्ञानस्य नीलनिबन्धनत्वसिद्विषदिति चेत् । मीमांसक कहते हैं कि यह वही शब्द है ऐसे पहिले और पीछेके उच्चारित शब्दोंमें एकपने का विचार करनेवाले ज्ञानका कोई बाधक नहीं है । उस कारण प्रत्यभिज्ञानको प्रमाणताका प्रयोजक एकत्वरूप कारणसे ही उत्पन्न होनेपनेकी सिद्धि हो जावेगी जैसे कि पूर्व में नीले रंगकी चीज है ऐसा ज्ञान होता है। यहां भी बाधारहित प्रत्यभिज्ञानसे नील के ज्ञानमें उसी पूर्वकी नील वस्तुको कारणपना सिद्ध किया गया है । अन्धकार कहते हैं कि यदि ऐसा कहोगे ? स्यादेवं यदि तदेकत्वपरामर्शिनः प्रत्ययस्य बाधकं न स्यात् स एवायं देवदत्त इत्याद्येकत्वपरामर्शिप्रत्यवत् अस्ति च बाधकं नानागोशब्दो बाधकाभावे सति युगपद्भिन्नदेशतयोपलभ्यमानत्वाद्ब्रह्मवृक्षादिवत् इति । यों इस प्रकार तब कह सकते है । कि पहिले देखे हुए देवदत्तको पुनः देखने पर यह वही 'देवदत्त ऐसा एकत्वको विषय करनेवाला प्रत्यभिज्ञान जिस प्रकार बाधारहित है, यदि उसीप्रकार पूर्वापर अवस्था में शब्द एकपनेका निश्चय करनेवाले प्रत्यभिज्ञानमें कोई बाधक उपस्थित न होता तो अवश्य ही उस प्रत्यभिज्ञानसे शब्दकी नित्यता सिद्ध हो जाती, किंतु शब्दमें नित्यताके ज्ञानका बाधक तो यह अनुमान विद्यमान है कि "नाना व्यक्तियोंके द्वारा अनेक देशों में बोले हुए गोशब्द अनेक हैं ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि अनेकपनेका बाधक प्रमाण न होते सन्ते एक ही समय में भिन्न भिन्न देशों में स्थित हो रहे सुनायी पड रहे हैं । ( हेतु ) जो बाधासे रहित होकर एक कालमें अनेक देशों में रहते हुए दीखते हैं, वे पदार्थ अनेक हैं, जैसे कि ढाक के पेड, घट, पटादि अनेक वस्तुएँ नाना है (अन्यदृष्टान्त ) |
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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