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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
मिथ्याभिमाननिर्मुक्तिर्ज्ञानस्येष्टं हि दर्शनम् । ज्ञानत्वं चार्थविज्ञप्तिश्चर्यात्वं कर्महंता ॥ ५४ ॥ शक्तित्रयात्मकादेव सम्यग्ज्ञानाददेहता । सिद्धा रत्नत्रयादेव तेषां नामान्तरोदितात् ॥ ५५ ॥
यदि किसी आत्मीय स्वभावसे विशिष्ट हुए सम्यग्ज्ञानको ही समाधि मानोगे तो वह उस ज्ञानकी विशिष्ठता दूसरे शब्दों में कमोंके फलको ध्वंस करनेकी शक्ति ही समझनी चाहिये । यही हम समीचीन तर्केणा करते हैं । ज्ञानका मिष्याश्रद्धानरूप आग्रहसे रहित हो जाना ही सम्बग्दर्शन सहितपना निर्णीत है। तथा तस्वार्थीको जान सेना ज्ञानपन है और कमका नाशकरदेनापन ही ज्ञानका चारित्रपना है। इस प्रकार ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप तीनों शक्तियों के अमेदास्मक सम्यग्ज्ञानसे ही शरीररहित मुक्त अवस्था सिद्ध हो जाती है। उन तीन रत्नों को ही उन नैयायिकोंने दूसरे शब्दों से कहा है अर्थात् समाधि, फलोपभोग, आदि अन्य शब्दोंसे कहकर नैयायिकोंने रत्नत्रयको दी मोक्षका मार्ग माना है ।
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः सम्यग्ज्ञानं मिध्याभिनिवेशमिथ्याचरणामाविशिष्टमिति वा न कश्चिदर्थभेदः, प्रक्रियामात्रस्य भेदानामांतरकरणात् ।
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता मोक्षका मार्ग है, यह जैनोंका मन्य है और मिथ्या आग्रह तथा मिथ्याचर्या इन दोनोंके अभाव से विशिष्ट सम्यग्ज्ञान ही मोक्षमार्ग है इस प्रकार नैयायिकों का अथवा अकेले सम्यग्ज्ञानसे मोक्ष माननेवाले वादियों का कहना है । इस प्रकार केवल शब्दों में भेद है । अर्थ में कोई भेद नहीं है । घोडीसी केवल दार्शनिक प्रक्रिया के भेदसे दूसरे दूसरे नाम कर दिये गये हैं। परिशेषं रश्नमसे ही सबके मतमे मोक्ष होना अभिप्रेत हो जाता है । इन्द्रदेव नामका छात्र न्याय और व्याकरण तथा सिद्धांत इन तीन विषयको पढा है, यों कहो मा न्याय व्याकरण के साथ सिद्धांत विषयको पढता है यों कहिये अभिमाय एक ही है।
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एतेन ज्ञानवैराग्यान्मुक्तिप्राप्त्यवधारणम् ।
न स्याद्वादविघातायेत्युक्तं बोद्धव्यमञ्जसा ॥ ५६ ॥
जो अकेले तत्त्वज्ञानको हो मोक्षका कारण मानते हैं। उनको भी सहकारी कारणों की प्रक्रिया रत्नत्रयको मोक्षमार्ग मानना पडता है। इस उक्त कथन के द्वारा यह बात भी निर्दोष रूपसे कथन कर दी गयी समझनी चाहिये कि ज्ञान और वैराम्यसे ही मोक्षकी प्राप्तिका नियम करना भी स्याद्वादसिद्धांतो घात करनेके लिये समर्थ नहीं है। भावार्थ- ज्ञानमे समीचीनता सम्यग्दर्शन के
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