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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
समर्थन कर दिया गया है, इस प्रकार आदिवाक्यके कथनपर बहुत विचार करनेपर भी वही हमारी कही हुयी पूर्वोक्त सफलता सिद्ध हुयी । अब अधिक इस प्रकरणको बढानेसे कुछ तत्त्व नहीं सधता है।
अब यहां दूसरी और तीसरी बात्तिकोंके अवतरण करने का उत्थान किया जाता है।
ननु च तत्वार्थशास्त्रस्यादिसूत्रं तावदनुपपन्न प्रवक्तृविशेषस्याभावेऽपि प्रतिपाद्यविशेषस्य च कस्यचित्प्रतिपित्सायामसत्यामेव प्रवृत्तत्वादित्यनुपपत्तिचोदनायामुत्सरमाह ।
___ यहां शंका है कि उपर्युक्त प्रयोजनवाक्यका अनुमान और आगमरूपपना तभी माना जा सकता है, जब कि तत्वार्थसूत्र ग्रन्थकी सिद्धि हो जाय। हम तो कहते हैं कि तत्त्वार्थसूत्रका पहिला " सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः " सूत्र ही सिद्ध नहीं है क्योंकि सच्च वक्ताके न होते भी और किसी विशेष समझनेवालेकी जाननेकी इच्छा न होनेपर ही इस सूत्रको बोलनेकी प्रवृति हो गयी है ! कोई अच्छे वक्ताके द्वारा श्रद्धापूर्व सुननेवाले शिष्योंकी प्रगाढ इच्छा होनेपर ही जो वाक्य बोला जाता है, वह प्रमाणसिद्ध माना जाता है । जब कि पहिले सूत्रकी ही असिद्धि है तो फिर पूर्ण तत्त्वार्थसूत्र या उसकी टीका श्लोकार्तिक और उसके आदिवाक्यको प्रामाणिक बताना विना भित्तिके चित्रलेखनसमान अनुचित है । इस प्रकार आदिसूत्रके विषयमें ही शंकाकारद्वार असिद्धिकी प्रेरणा होनेपर श्रीविद्यानंद स्वामी उत्तर कहते हैं।
प्रयुद्धाशेषतत्त्वार्थे साक्षात्प्रक्षीणकल्मषे सिद्धे मुनीन्द्रसंस्तुत्ये मोक्षमार्गस्य नेतरि ॥ २ ॥ सत्यां तत्प्रतिपित्सायामुपयोगात्मकास्मनः
श्रेयसा योक्ष्यमाणस्म प्रवृसं सूत्रमादिमम् ॥ ३ ॥ कल्याणमार्गके अभिलाषी अनेक शिष्योंकी मोक्षमार्ग जाननेकी इच्छा होनेपर ही " मोक्षमार्गस्थ नेतारं भत्तारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां बंद तद्गुणलब्धये " इस अच्छी तरह सिद्ध किये गये मंगलाचरण की भित्तिपर ही उमास्वामी महाराजने पहिला सूत्र लिखा है। केवलज्ञानद्वारा प्रत्यक्षरूपसे अच्छी तरह जान लिये हैं सम्पूर्ण पदार्थ जिन्होंने, और नष्ट कर दिये हैं ज्ञानावरणादि घातिकर्म जिन्होंने, तथा मोक्षमार्गको प्राप्त करने और करानेवाले मुनि श्रेष्ठोंके द्वारा भले प्रकार स्तुति करने योग्य नीजिनेन्द्रदेवके सिद्ध होनेपर ही तथा ज्ञानदर्शनोंपयोग-स्वरूप और मोक्षसे भविष्यमें युक्त होनेवाले शिष्यकी मोक्षमार्गको जाननेकी तीन अभिलाषा होनेपर यह पहिला सूत्र " सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥ उमास्वामी आचार्यने प्रचलित किया है।